- December 29, 2022
जबलपुर से 45 किलोमीटर दूर सिंगौरगढ़ का किला अपने में ऐतिहासिक घटनाओं को समेटे हुए, आप भी एक बार जरूर जाएं
ट्राई सिटी एक्सप्रेस। न्यूज
जबलपुर मध्यप्रदेश से महज 45 किलोमीटर दूर स्थित है गोंडशासकों का पुराना और ऐतिहासिक किला सिंगौरगढ़। आज इस किले के अवशेष ही बचे हैं, लेकिन आज से करीब 1 हजार साल पहले जब इसे तैयार किया गया, उस समय काफी विचार कर सुरक्षित तरीके से इस पूरे किले को आकार दिया गया। दमोह जिले में स्थित इस किले तक कटंगी के रास्ते सिंग्रापुर होते हुए पहुंचा जा सकता है।
यह एक मुख्य पर्यटन स्थल है। यहां पर आपको एक प्राचीन किला देखने के लिए मिलता है। सिंगौरगढ़ के किले को गोंडवाना किला और रानी दुर्गावती के किले के नाम से भी जाना जाता है। यह किला अब यहां पर खंडहर अवस्था में देखने के लिए मिलता है। यह चारों तरफ से जंगल से घिरा है। किले तक पहुंचने के बाद एक आकर्षक साइड सीन भी नजर आता है, जो सतपुड़ा के जंगलों से घिरा हुआ है। ऊंची पहाड़ी पर यह बना हुआ है। इस किले में पहुंचने के लिए आपको पैदल चलना पड़ता है। सिंगौरगढ़ का किला रानी दुर्गावती वन्य जीव अभ्यारण के अंदर स्थित है। इस अभ्यारण्य में आप अपने वाहन से भी घूम सकते हैं, सिर्फ आपको ढाई सौ रुपए की एक पर्ची कटानी पड़ेगी। किले में सैर-सपाटे के लिए कोई शुल्क नहीं है। आप इस किले में बरसात के समय घूमने आ सकते हैं। इस किले में आपको बहुत सारी प्राचीन वस्तुएं देखने के लिए मिल जाती है। यहां पर आपको प्राचीन मूर्तियां देखने के लिए मिल जाएगी।
बारिश के समय यहां आना सबसे बेहतर
सिंगौरगढ़ का किला घूमने के लिए सबसे अच्छा समय बरसात का रहता है, क्योंकि इस समय यहां पर आपको हरियाली देखने के लिए मिलती है। यह किला रानी दुर्गावती अभ्यारण के अंदर स्थित है। इसलिए आप बरसात के समय और ठंड के समय इस किले में घूमने के लिए जा सकते हैं। गर्मी में अगर आप इस किले में घूमने के लिए जाते हैं, तो आपकी हालत खराब हो जाएगी। रानी दुर्गावती अभ्यारण में आपको जंगल देखने के लिए मिलता है। इस जंगल में सिंगौरगढ़ किले में जाने के लिए आपको कच्चा रास्ता मिलता है। रानी दुर्गावती में अधिकतर जो रास्ता है। वह कच्चा है। आपको कुछ रास्ता पक्का भी देखने के लिए मिलेगा।
एक भी झील भी, जहां हाथी दरवाजा आकर्षण का केंद्र
आप लोगों को सिंगौरगढ़ झील (Singaurgarh lake) तक नहीं जाना है। सिंगौरगढ़ झील के जाने वाले रास्ते के बीच में ही आपको हाथी दरवाजा देखने के लिए मिलता है। यहां पर आपको एक प्राचीन इमारत देखने के लिए मिलेगी। इस इमारत का अधिकतर भाग अब खंडहर में तब्दील हो चुका है। इस इमारत के बाजू से ही सीढ़ियां जाते हैं। आप इन सीढ़ियों से सिंगौरगढ़ किले तक पहुंच सकते हैं। आपको पहाड़ियों से रास्ता देखने के लिए मिलता है। आपको इन्हीं रास्ते से चलते हुए सिंगौरगढ़ किले तक पहुंचते हैं। यह किला अब खंडहर में तब्दील हो चुका है और इस किले में आपको बहुत सारे मंदिर और प्राचीन मूर्तियां देखने के लिए मिल जाती है। यह किला दो मंजिला है।
आकर्षक मूर्तियां रखरखाव के अभाव में खराब हो रहीं
किले में आपको मूर्तियां भी देखने के लिए मिलती है। यह मूर्तियां पत्थरों पर नक्काशी करके बनाई गई हैं। प्राचीन समय में इस किले में रानी दुर्गावती निवास करते थी। यहां पर रानी दुर्गावती विवाह के पश्चात आई थी। यह किला गोंडवाना किला के नाम से भी जाना जाता है। सिंगौरगढ़ किले का निर्माण राजा दलपति शाह ने करवाया था। इस किले के पास में पहाड़ी के नीचे एक झील बनी हुई है। यह झील प्राचीन है। इस झील को सिंगौरगढ़ झील कहते हैं। इस झील में रानी दुर्गावती जी स्नान करने के लिए आया करती थी। यहां पर एक छिपा हुआ रास्ता है, जिससे रानी झील में स्नान करने के लिए आती थी। इस झील में अब मगर रहते हैं। इस झील का नजारा बहुत सुंदर रहता है। यह झील गहरी है और यहां पर आपको एक हनुमान मंदिर भी देखने के लिए मिल जाता है। झील के पास बहुत सारे बेल के पेड़ लगे हुए हैं।
सिंगौरगढ़ का किला किसने बनवाया
मध्य भारत में मध्य प्रदेश राज्य के दमोह जिले में सिंगौरगढ़ का किला स्थित हैं, यह किला गढ़ा साम्राज्य का एक पहाड़ी किला है, जो एक वन क्षेत्र की पहाड़ियों में फैला हुआ है। यह जबलपुर शहर से लगभग 45 किमी दूर दमोह शहर के रास्ते में है। यह एक शानदार और ऐतिहासिक किला मध्य भारत के गौंड शासकों का निवास स्थान था, जो प्रत्येक वर्ष कुछ समय वहां बिताते थे। वर्तमान में सिंगौरगढ़ का किला जर्जर हालत में है। जिसका कारण किले का रखरखाव नहीं होना है। किले तक पहुंचने के लिए पैदल पगडंडी मार्ग है क्योंकि सिंगौरगढ़ किले तक पहुंचने के लिए कोई उचित सड़क नहीं है।
सिंगौरगढ़ गोंडवंशी नरेशों का शक्तिशाली केन्द्र था।जब दिल्ली में तुर्कों और मुगलों का शासन सुदृढ़ हो रहा था, उस समय बुन्देलखण्ड के दक्षिण पूर्वी भाग में गौंड वंशी नरेशों का राज्य था। इस वंश के अनेक नरेश हुये। गढ़ा मंगला किले में गौंड वंशीय नरेशों की एक वंशावली उपलब्ध हुई। यह वंशावली यहाँ के मोती महल के अभिलेख में है। इस वंश का सबसे शक्तिशाली नरेश संग्रामशाह था। जो अत्यन्त क्रूर और दुष्ट स्वाभाव का था। उसने अपने पिता की भी हत्या कर थी, तथा इसने बाहुबल से 52 गढ़ो पर विजय प्राप्त की थी। वह इस वंश का शक्तिशाली शासक बन गया था। दमोह जिले मे स्थित सिंगौरगढ़ इसी के अधिकार में था। संग्राम शाह का देहान्त विक्रमी संवत् 1587 तदानुसार सन् 1598 में हुआ था।
पिता की मृत्यु के पश्चात संग्राम शाह का पुत्र दलपतिशाह राज्य का उत्तराधिकारी बना उसने अपना निवास स्थल जबलपुर में गुढ़ा दुर्ग बनाया। किन्तु कुछ समय बाद दलपतिशाह दमोह जिले के सिंगौरगढ़ में रहने लगा। उसने सिंगौरगढ़ का किला को मजबूत किया और उसका विस्तार किया।
दलपतिशाह का विवाह कालिंजर की राजकुमारी राजाकीर्ति सिंह की पुत्री रानी दुर्गावती से हुआ था। विवाह के कुछ दिनो के पश्चात रानी दुर्गावती विधवा हो गयी इस समय उसका पुत्र वीर नरायण 3 वर्ष का था। मुगल सम्राट अकबर ने अपने सेनापति ख्वाजा अब्दुलमजी कुल्फ आसफ खाँ को गौंडवाने में आक्रमण करने के लिये भेजा रानी दुर्गावती का यह संग्राम सिंगौरगढ़ से चार मील दूर संग्रामपुर में होता रहा। इस युद्ध में पहले आसफ खाँ हारा किन्तु आसफ खाँ की सहायता के लिए मुगल सेना के आ जाने के कारण रानी दुर्गावती पराजित हुई और वीरगति को प्राप्त हुई। रानी दुर्गावती की मृत्यु के पश्चात यह दुर्ग मुगलो के आधीन हो गया और मुगलों ने इस दुर्ग को मनमाने ढंग से लूटा।
इन स्थलों को जरूर देखें
किले का परिकोटा जो अलग-अलग हिस्सों में फैला हुआ है। हाथी प्रवेश द्वार, मुगलों और गोंडो के युद्ध स्मारक, संग्रामशाह और दलपतिशाह के आवासीय महल और झील (जलाशय) जहां अब बारिश के दिनों में ही पानी रहता है।