• February 10, 2023

महाशिवरात्रि व्रत 18 फरवरी को रात 8.03 बजे से प्रारंभ होंगे

महाशिवरात्रि व्रत 18 फरवरी को रात 8.03 बजे से प्रारंभ होंगे

ट्राई सिटी एक्सप्रेस। न्यूज

शिवरात्रि (महारात्रि ) पंडित योगेश कुमार तिवारी द्वारा दी गई विशेष जानकारी 18 फरवरी से प्रारंभ होने वाले महाशिवरात्रि के व्रत 18 तारीख को रात्रि 8:03 से प्रारंभ होंगे और 19 तारीख को 4:19 शाम तक विशेष है यह शिवरात्रि शनिवार को पड़ने के कारण शिव प्रदोष और विशेष तिथि को प्राप्त हुई है शनि की शांति के लिए इस महाशिवरात्रि को शनि पीड़ित व्यक्तियों को व्रत अवश्य करना चाहिए 19 फरवरी को इसका व्रत का समापन रात्रि 1:00 बजे तक होगा 19 तारीख को ही व्रत का पारण सुबह 6:56 से दोपहर 3:24 तक फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन किया जाता है भगवान शंकर और माता पार्वती के विवाह का यह दिन सौभाग्यवती स्त्रियों को अखंड सौभाग्य और पुरुषों को पूर्ण पुरुषार्थी बनाने के लिए विशेष महत्व रखता है दक्ष के यज्ञ में जब माता सती ने अपने शरीर को आहूत किया अपने शरीर की आहुति दी और वह उसमें समा गई तो उनके प्रज्वलित शरीर को शिव शंभू ने उठाकर विश्व का भ्रमण करने लगे तब सती माता के शरीर को श्री विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से अलग-अलग भागों में विभक्त किया जो 51 शक्तिपीठ कहलाए, माता जी को अपने शरीर पर उठाकर शिव शंकर ने जो नृत्य किया वही तांडव नृत्य कहलाया इसलिए शंकर भगवान का नाम नटराज भी पड़ा वह दिन ही महाशिवरात्रि था शिव शंकर नाद के विभिन्न रूप बनाए जिस कारण वे नटराज कहलाए उनकी नृत्य कला का वह रूप तांडव नृत्य कहलाया ।शिवजी देव और दानव दोनों को बचाने के लिए समुद्र से निकला हुआ विष का पान भी इसी दिन किये थे, वह दिन ही शिवरात्रि का था, जिस दिन जिस दिन शिव शंकर जी ने गंगा को अपने जटाओं में धारण किया वह दिन भी शिवरात्रि का ही था और जिस दिन भगवान शंकर ने अपने स्वरूप को लिंग रूप में परिवर्तित किया था ध्यान योग और भक्ति की शिक्षा दी थी वह दिन भी शिवरात्रि का ही था। पूजन का नियम , शिवजी का जलाभिषेक करना झूठ नहीं बोलना। सात्विकभोजन करना । नशे से दूर रहना। पवित्र विचारों को धारण करना। धतूरा, बेलपत्र, पंचगव्य, धूप दीप, नैवेद्य, चढ़ाकर शिवजी का पंचाक्षर मंत्र ओम नमः शिवाय के जाप से रुद्राभिषेक करें। शिव जी का निवास सतयुग द्वापर और त्रेता में गढ़वाल मंडल मुख्यालय में पौड़ी के शिखरों में कंकालेश्वर महादेव के नाम से आज भी गुप्त , गुप्त स्थान उत्तराखंड में हैं जिसका वर्णन स्कंद पुराण में किया गया है, ताड़केश्वर नामक दैत्य से बचने के लिए यमराज ने कीनास पर्वत में शंकर भगवान की घोर तपस्या की थी जिससे प्रसन्न होकर शंकर भगवान ने यमराज को दर्शन दिए और कलयुग में यहां उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में स्थित पौड़ी के शिखरों में मैं प्रगट होऊंगा। ऐसा आशीर्वाद दिया , गढ़वाल कोलासुर दैत्य के सिर का अवशेष पर बसा होने के कारण इसे किनास पर्वत कहते हैं । इस दैत्य का वध माता त्रिपुर सुंदरी ने ही किया था और वह दिन भी शिवरात्रि का ही था। इस स्थान पर सावन में जलाभिषेक किया जाता है और यहां 12 मास यात्री गणों की दर्शन के लिए भीड़ लगी रहती है। मृकण्ड ऋषि के पुत्र मार्कंडेय जी हुए जिन्होंने शिव भक्ति में महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया । जिसका वर्णन यजुर्वेद के रूद्र अध्याय में शिव स्तुति हेतु प्रस्तुत किया है। जम्मू कश्मीर के पास अमरनाथ गुफा और उसका दूसरा सिरा बाबा बर्फानी यह दोनों स्थान शिव खोड़ी शिव जी का साक्षात दर्शन पाने का कलयुग में महत्वपूर्ण स्थान है। शिव पूजन में सर्वप्रथम अग्नि स्थापना नवग्रह स्थापना पूजन ब्रह्मा जी का पूजन कुंड पूजन फिर यज्ञ आदि कर्मों की मान्यता है। जप विधि में जप पश्चात तर्पण, तर्पण पश्चात मार्जन ,मार्जन के पश्चात ब्राह्मण भोजन करवाना उचित है। जलाभिषेक ओम नमः शिवाय मंत्र से, मंत्र जाप ॐ ह्रिंम हैरोंम नमः शिवाय से करें। मानसिक जाप ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र प्रचोदयात । अभिषेक पूजा ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र प्रचोदयात मंत्र से करें। तत्पश्चात शिव तांडव स्त्रोत शिव स्तुति शिव चालीसा शिव सहस्त्रनाम का पाठ करें। हनुमान चालीसा का पाठ करें। बजरंग बाण का पाठ करें। श्री राम जी की स्तुति करें राम चरित्र मानस का पाठ करें। शिव परिवार का ध्यान करें गौरी गणेश का स्वामी कार्तिकेय नंदी भृंगी श्रृंगी सप्तर्षियों के साथ आवाहित समस्त देवी देवताओं से क्षमा याचना कर अपनी अभिलाषा मनोकामना इच्छा रखें जो भगवान शंकर की विशेष अनुकंपा से सभी को मनोवांछित फल प्रदान करने वाली है ।


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