• August 23, 2024

कृषि महाविद्यालय, साजा में गाजर घास उन्मूलन जागरूकता अभियान चलाया गया

कृषि महाविद्यालय, साजा में गाजर घास उन्मूलन जागरूकता अभियान चलाया गया

ट्राई सिटी एक्सप्रेस। न्यूज

बेमेतरा। कुमारी देवी चौबे कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, साजा के द्वारा अधिष्ठाता डॉ. आलोक तिवारी के मार्गदर्शन में गाजर घास उन्मूलन जागरूकता अभियान चलाया गया। इस कार्यक्रम में महाविद्यालय के सदस्य विज्ञान के अतिथि शिक्षक डॉ. हेमंत कुमार जांगड़े ने छात्र-छात्राओं को बताया कि गाजर घास (पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस) जिसे कांग्रेस घास, सफेद टोपी गजरी, चटक चांदनी आदि नामों से जाना जाता हैं। गाजर घास एक विदेशी आक्रामक खरपतवार है। भारत में यह सर्वप्रथम 1956 में महाराष्ट्र के पुणे में देखा गया था। वर्तमान समय में यह भारत में लगभग 35 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर फैल चुका है। यह एक वर्षीय शाकीय पौधा है जिसकी लम्बाई लगभग 1.5 मीटर से 20 मीटर तक हो सकती है। इसकी पत्तियाँ गाजर की पत्ती की तरह दिखाई देती है। प्रत्येक पौधे से लगभग 5000 से लेकर 25000 तक अत्यंत सूक्ष्म बीज पैदा होता है। जिसमें सुसुप्तावस्था नहीं होने के कारण जमीन में गिरने के बाद नमी पाकर अंकुरित हो जाते हैं। गाजर घास अपना जीवन चक्र 3-4 माह में पूरा कर लेता है।
मनुष्य का इस घास के लगातार संपर्क में आने से चर्म रोग, बुखार, एलर्जी, एक्जिमा एवं दमा जैसी गंभीर बिमारियों हो जाता है। पशुओं के द्वारा इसे खाने से पशुओं में अनेक प्रकार के रोग पैदा हो जाता है तथा दूध के उत्पादन में कमी आ जाती है। साथ ही गाजर घास के समेकित तरीके से प्रबंधन करने के लिए छात्र-छात्राओं को जागरूक किया तथा उनको बताया गया कि इस खरपतवार को फूल आने से पहले हाथ से उखाड़कर इक्ट्ठा करके जला देने या इसका कम्पोष्ट बनाकर नियंत्रित कर सकते है। शिक्षक ने छात्र-छात्राओं को सचेत करते हुए बताया कि गाजर घास को हाथ से उखाड़ते समय हाथ में दस्ताने, चेहरे पर मास्क तथा पूरा शरीर ढका होना चाहिए। गाजर घास को रासायनिक विधि से नियंत्रण करने के लिए मेट्रिब्युजिन (0.3-0.5 प्रतिशत), 24-डी (1-1.5 प्रतिशत) कृषित क्षेत्रों में तथा अकृषित क्षेत्रों में ग्लाइफोसेट (1-1.5 प्रतिशत) का उपयोग करना चाहिए। इस कार्यक्रम में महाविद्यालय के सहायक प्राध्यापक डॉ. कमलनारायण कोशले ने बताया कि जैविक विधि से प्राकृतिक शत्रु कीट में मेक्सिकन बीटल (जाइगोग्रामा बाइकोलोराटा) को ग्रसित स्थानों में छोड़कर व प्रतिस्पर्धी वनस्पतियों जैसे चकौड़ा, जंगली चौलाई आदि से नियंत्रित किया जा सकता है। उक्त कार्यक्रम में महाविद्यालय के अतिथि शिक्षक डॉ. रोहित, डॉ. दयानंद नवरंग, डॉ. रेवेन्द्र साहू, श्री नूतन लाल देवांगन, डॉ. अंजली वर्मा एवं छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।

 

 

ट्राई सिटी एक्सप्रेस, ब्यूरो चीफ बेमेतरा, योगेश कुमार तिवारी, 9425564553, 6265741003,


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