- October 5, 2024
निकाय चुनाव को लेकर खलबली, अब तक पिछड़ा वर्ग सर्वे का काम अधूरा, निकायों में प्रशासक बैठना लगभग तय
ट्राईसिटी एक्सप्रेस। न्यूज
नवंबर-दिसंबर महीने में होने वाले निकाय चुनाव टल सकते हैं। वजह सुप्रीम कोर्ट का वह आदेश, जिसके अंतर्गत छत्तीसगढ़ में पिछड़ा वर्ग का सर्वे कराया जा रहा है। सर्वे का काम कछुवा चाल से चल रहा है, साथ ही कई तरह की लापरवाही बरती जा रही है। इसके कारण इसके समय पर पूरा होने की संभावना भी कम है। ऐसे में निकायों के वर्तमान कार्यकाल के पूरा होते ही इन जगहों पर प्रशासक का बैठना लगभग तय माना जा रहा है। प्रस्तावित नगरीय निकाय चुनाव को लेकर संशय की स्थिति निर्मित हो रही है। यदि पिछड़ा वर्ग का डाटा आने में विलंब होगा, तो इसका असर चुनावी कार्यक्रमों पर पड़ सकता है।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद राज्य सरकार ने पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया है। अब आयोग पिछड़ा वर्ग का सर्वे करा रही है। सर्वे का काम 10 अक्टूबर तक होना है। इसकी रिपोर्ट आने के समय को आगे बढ़ाए जाने की तैयारी की जा रही है। रिपोर्ट आने के बाद इसकी डाटा तैयार होगा। इस वजह से अक्टूबर के दूसरे सप्ताह में यह स्पष्ट हो जाएगा कि नगरीय निकाय के चुनाव कब होंगे। हालांकि राज्य निर्वाचन आयोग दिसबर में नगरीय निकाय चुनाव की तैयारी कर रहा है। यदि पिछड़ा वर्ग का डाटा आने में विलंब होगा, तो इसका असर चुनावी कार्यक्रमों पर पड़ सकता है। इधर राज्य निर्वाचन आयोग निकाय चुनाव करने के लिए मतदाता सूची तैयार करने का काम कर रही है। यह काम 20 अगस्त से शुरू हो चुका है। यह काम 10 अक्टूबर तक किया जाएगा। इसके लिए बीएलओ घर-घर जाकर मतदाता सूची का सत्यापन कर रहे हैं। यही वजह है कि पिछड़ा वर्ग आयोग के सर्वे का काम भी बीएलओ को दिया गया है। उन्हें एक प्रपत्र दिया गया है, जिसमें पिछड़ा वर्ग से जुड़ी अहम जानकारी को एकत्र किया जा रहा है। साथ ही बीएलओ को इस बात की भी हिदायत दी गई है कि यदि वे इसकी जानकारी की लीक करते हुए, तो उनकी जिम्मेदारी तय होगी।
नहीं तो बैठाना होगा प्रशासक
वर्ष 2019 में कुल 151 नगरीय निकाय में मतदान हुआ था। इसमें प्रदेश के 10 नगर निगम भी शामिल थे। इनके लिए 21 दिसबर को मतदान हुआ था और नतीजों की घोषणा 24 दिसबर 2019 को हुई थी। ज्यादातर महापौर के प्रथम समेलन की तिथि 5 या 6 जनवरी है। राज्य निर्वाचन आयोग को इस तिथि के पहले चुनाव करा कर नतीजे जारी करना जरूरी है। किसी कारण से तय समय पर चुनाव नहीं होता है, तो संबंधित निकायों की बॉडी को भंग करके, वहां प्रशासक की पदस्थापना आवश्यक हो जाएगी। पिछली बार रिसाली नगर निगम की घोषणा होने के बाद वहां प्रशासक बनाया गया था। हालांकि प्रशासक की नियुक्ति होने की स्थिति में आम जनता को थोड़ी परेशानी उठानी पड़ सकती है। इस बार के नगरीय निकाय चुनाव में कई पेंच आ रहे हैं। जैसा कि इस बार नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव एक साथ कराने की चर्चा चल रही है। इसे लेकर सामान्य प्रशासन विभाग ने आम जनता से राय भी मांगी थीं। अभी इस पर फैसला होना बाकी है। इसके अलावा प्रदेश में नगरीय निकाय के चुनाव ईवीएम से होते आए थे। पिछली सरकार ने बैलेट पेपर से चुनाव कराए थे। इसके अलावा आम जनता से महापौर चुनने का अधिकार भी वापस ले लिया था। सरकार बदलने के बाद दोनों प्रक्रियाओं में बदलाव की चर्चा, लेकिन इस पर अभी तक निर्णय नहीं हो सका है।
दुर्ग और भिलाई में मेयर आरक्षण ओबीसी महिला होने के आसार
निकाय चुनाव को लेकर इस समय चर्चाओं का बाजार गर्म हैं। राजनीतिक जानकार अपने-अपने तरीके से गणित बैठाने की जुगत में हैं। आपने आकाओं के दरबार में हाजिरी लगाने भी पहुंच रहे हैं। बता दें कि भिलाई और रायपुर दो बार से सामान्य मेयर की सीट रहा है। वहीं दुर्ग पिछले चुनाव में मेयर सामान्य रहा। सभी जगहों पर अप्रत्यक्ष पद्धति से मेयर का चुनाव हुआ, यानी पार्षदों ने मेयर का निर्वाचन किया। इस बार राज्य में भाजपा की सरकार है। भाजपा प्रत्यक्ष चुनाव कराए जाने की तैयारी में है। ऐसे में सभी जगहों पर महापौर का चुनाव जनता करेगी। खबर तो यहां तक है कि भिलाई और रिसाली में सिर्फ महापौर का चुनाव कराए जाने की तैयारी है। इसके लिए एक अध्यादेश लाने की तैयारी है। ताकि पार्षदों की पार्षदी का कार्यकाल पूरा हो, वहीं दोनों निकायों में स्वतंत्र मेयर मिल सके। वर्तमान में दोनों ही जगहों पर कांग्रेस के मेयर शहर सरकार में काबिज है। भाजपा इस रास्ते इन मेयरों को हटाने की तैयारी में है। इधर दुर्ग में अब भी कुछ नेता सामान्य सीट होने की आस लगाए बैठे हैं। उनके मुताबिक भिलाई और रायपुर यदि ओबीसी महिला हुआ तो दुर्ग के सामान्य होने की संभावना बढ़ जाएगी।
चुनाव पर ग्रहण लगभग तय, कांग्रेस सरकार ने भी कराया था सर्वे
बता दें कि ओबीसी सर्वे को लेकर लगातार सवाल उठते रहे हैं। सर्वे को लेकर सिर्फ खानापूर्ति की गई है। करीब डेढ़ साल पहले भी कांग्रेस सरकार में ओबीसी सर्वे हुआ था। सर्वे सूची को सभी निकायों की सामान्य सभा बैठक से पारित भी कराया गया, लेकिन कई विसंगति के कारण इस सूची को रद्द करना पड़ा। अब दोबारा सर्वे कराया जा रहा है। इस पर भी अभी से सवाल उठने लगे हैं। अब तक इस सर्वे सूची को किसी अधिकृत और प्रमाणित संस्था ने सत्यापित नहीं किया है। इसलिए आगामी निकाय चुनाव में ग्रहण लगना लगभग तय माना जा रहा है।