- December 6, 2022
सरकारी भर्राशाही : मेडिकल कॉलेज अस्पताल में 4 नवजात बच्चों की मौत, ड्यूटी पर कौन डॉक्टर था यह तक नहीं बता पा रहा सिस्टम
सरकारी भर्राशाही : मेडिकल कॉलेज अस्पताल में 4 नवजात बच्चों की मौत, ड्यूटी पर कौन डॉक्टर था यह तक नहीं बता पा रहा सिस्टम
ट्राईसिटी एक्सप्रेस। न्यूज
मेडिकल कॉलेज अस्पताल अंबिकापुर में बीती रात 4 घंटे तक बिजली गुल रही। लाइट आई तो एसएनसीयू (SNCU) में भर्ती 4 बच्चों की मौत हो चुकी थी। अब मौत किस वजह से हुई, इसका खुलासा अब तक नहीें हो पाया है। स्वास्थ्य विभाग में भर्राशाही इस हद तक है कि घटना के समय कौन डॉक्टर पदस्थ था, इसका नाम तक कोई नहीं बता पा रहा या बताना नहीं चाह रहा। मौत की जब खबर मिली तो कलेक्टर, एसपी, निगम आयुक्त, एसडीएम, सीएमएचओ सभी अस्पताल पहुंच गए। उन्होंने एसएनसीयू का निरीक्षण किया, लेकिन मामले में सिर्फ जांच के निर्देश दिए गए और जांच शुरू कर दी गई।
रविवार की रात करीब 11 बजे अचानक बिजली बंद हुई
अस्पताल की बिजली अचानक गुल हो गई। करीब 4 घंटे बाद जब बिजली आई तो एक-एक कर 4 नवजातों की सांसें थम चुकी थीं। इस मामले में मृतक बच्चों के परिजनों का आरोप है कि वार्मर ने काम करना बंद कर दिया था। जब लाइट आई तो बच्चों को वार्मर पर रखा गया। इसके बाद बच्चों की मौत होनी शुरू हो गई। इधर अस्पताल प्रबंधन का इतना ही कहना है कि जिन बच्चों की मौत हुई है, उनकी हालत गंभीर थी। स्टाफ नर्स ने नाम छापने की शर्त पर बताया कि हमने सभी परिजनों से कहा कि वे अपने बच्चों को सीने से लगाकर तथा कंबल से ढंक कर रखें। लाइट आने के बाद दोबारा बच्चों को वार्मर पर रखा गया।
इन लोगों बच्चों की हुई मौत
एसएनसीयू में जिन परिजनों के बच्चों की मौत हुई, उनमें विश्रामपुर निवासी गौरव कुमार सिंह, उदयपुर के ग्राम जजगा निवासी अरविंद खलखो, बलरामपुर जिले के शंकरगढ़ निवासी प्रदीप तिग्गा तथा सूरजपुर जिले के रमकोला निवासी विकास देवांगन शामिल हैं। इन बच्चों के शव को भी घंटों बाद दिया गया।
हर बार घटनाएं पर हम चेतने को तैयार नहीं
प्रदेश के सरकारी और निजी अस्पतालों में लगातार इस प्रकार की लापरवाही की घटनाएं सामने आते रही हैं, लेकिन हम चेतने को तैयार नहीं है। इलाज जैसे संवेदनशील विषय को लेकर चिकित्सक से लेकर शासन-प्रशासन के जिम्मेदार गंभीर नहीं है। उनकी लापरवाही से पूरा सिस्टम अनदेखी शुरू कर देता है। इस वजह से ऐसी घटनाएं सामने आती हैं। यदि समय रहते विषय को गंभीरता से लिया जाता, तो शायद इन बच्चों की जान बच पाती।