- December 4, 2022
अन्नू कपूर का खास कॉलम ‘कुछ दिल ने कहा’:कल्पना कार्तिक के साथ देव आनंद की किस तरह से बनी थी लव-केमिस्ट्री?
अन्नू कपूर का खास कॉलम ‘कुछ दिल ने कहा’:कल्पना कार्तिक के साथ देव आनंद की किस तरह से बनी थी लव-केमिस्ट्री?
उन्मुक्त था बंधन युक्त मेरा मन हो गया / जीवन में पहली बार आज कुछ हो गया / खुल गया सत्य, वास्तविक तथ्य / किंतु नैन परिधि, खुली इस विधि / कि नैन प्रांगण में, था मैं ही मैं / प्रेम बंधन हेतु, बांधा दृष्टि सेतु / दृष्टि सेतु पर भावों का आवागमन हो गया / जीवन में पहली बार आज कुछ हो गया। ये भाषा और भाव आज पाठक को बेशक अजीब लगे, लेकिन सत्य यह है कि दिल में जो सैलाब हिलोरे लेता है, वह होता कुछ ऐसा ही है। साड़ी बेशक स्कर्ट हो जाए, केवल एक हल्के स्पर्श से जो रोम-रोम खिल उठता हो, वो बेशक आज के दौर में आतुरता के साथ तुरंत हथियाने की स्थिति में पहुंच जाए, लेकिन प्रेम तो फिर भी प्रेम रहेगा। सदाबहार हीरो पुकारे जाने वाले देव आनंद के जीवन में मोहब्बत का सैलाब लेकर चली आईं उस ज़माने की सिंगिंग स्टार दिलकश हसीन सुरैया! विश्वास कीजिएगा कि इस दुनिया की तकरीबन सभी अमर प्रेम कथाओं का अंत त्रासदीपूर्ण रहा है- लैला-मजनू, शीरीन-फरहाद, रोमियो-जूलियट या फिर देव आनंद-सुरैया! सो इनकी प्रेम कथा में सुरैया की नानी मज़हब की दुहाई देकर नफ़रत के उस उरूज (चरम) तक जा पहुंचीं, जहां अंत तक नानी की नवासी यानी सुरैया सारी ज़िंदगी बिन ब्याही रहकर और 75 वर्ष तन्हाई में बिताकर 2004 में इस फ़ानी दुनिया से रुखसत हो गईं।
सुरैया। देवानंद का पहला प्यार। इन दोनों का तकरीबन ढाई तीन साल का साथ रहा।
सुरैया। देवानंद का पहला प्यार। इन दोनों का तकरीबन ढाई तीन साल का साथ रहा।
देव-सुरैया का तकरीबन ढाई तीन साल का साथ रहा। 1950 आते-आते संबंध बिखर गए। कड़वी हक़ीक़त दोनों जान गए थे कि अब बीते दिनों की मीठी यादों के सिवाय कुछ नहीं बचा है। लेकिन वक़्त गहरे से गहरे जख्मों को भर देने का हुनर भी रखता है। इधर, भाग्य ने प्रेमिका छीनी और उधर देव आनंद का फिल्मी सफर तरक़्की की बुलंदियों की ओर बढ़ चला। इसी बीच, बड़े भाई चेतन आनंद के साथ मिलकर देव आनंद ने अपनी प्रोडक्शन कंपनी ‘नवकेतन फिल्म्स’ की स्थापना भी कर ली। इसी के अंतर्गत एक नई फिल्म ‘बाज़ी’ से देव आनंद के मित्र गुरु दत्त ने निर्देशक के रूप में अपना फिल्मी सफर आरंभ किया। इस फिल्म की केंद्रीय भूमिका में एक पुरुष और दो स्त्री पात्र हैं। एक हीरो देव आनंद के साथ दो हीरोइन। इनमें एक थीं सशक्त कलाकार गीता बाली। दूसरी हीरोइन के लिए चेतन आनंद को निर्माता रूप शोरी ने एक लड़की की फोटो दिखाई। यह लड़की रूप शोरी को शिमला में एक शूटिंग लोकेशन पर नजर आई थी और उनकी पारखी नज़रों ने उसे परख लिया। इस सुंदर लड़की का नाम था मोना सिंघा। जब मोना सिंघा की मुलाकात चेतन आनंद और उनकी पत्नी उमा आनंद से हुई तो बातचीत के दौरान उमा के साथ उनकी रिश्तेदारी निकल आई। मोना की रुचि और लक्ष्य यकीनन सिनेमा में अभिनय करना था। सो हालात कुछ ऐसे बने कि मोना को नवकेतन फिल्म्स ने फिल्म ‘बाजी’ की दूसरी हीरोइन पात्र के लिए अनुबंधित कर लिया। चेतन आनंद ने फिल्मी नाम दिया ‘कल्पना कार्तिक’! बहुत शोध के बाद यह जानकारी 1953 के कल्पना कार्तिक के एक इंटरव्यू से मुझे प्राप्त हुई, अन्यथा हर किताब, इंटरनेट, विकीपीडिया पर जो लिखा है, वह सब बहुत सतही निकला, तर्क के आधार पर बिल्कुल खोखला। लिखने वालों ने 1951 में बाजी के सेट को मिलन स्थल बना दिया, परंतु यह समझना जरूरी है कि फिल्मेकिंग एक महंगी, लंबी और जटिल विधा है। एक फिल्म निर्माण में बरसों लग जाते हैं। डिजिटल टेक्नोलॉजी के इस युग में भी रॉ स्टॉक पर शूट करना, फिर लैब में उसकी प्रोसेसिंग, एडिटिंग, डबिंग, बैकग्राउंड म्यूजिक, फाइनल प्रिंट्स, रिलीज डेट, सिनेमा हॉल्स की व्यवस्था, फिल्म रिलीज आदि बहुत सारे कार्य होते हैं।
एक फिल्म के दृश्य में देवानंद के साथ कल्पना कार्तिक।
एक फिल्म के दृश्य में देवानंद के साथ कल्पना कार्तिक।
इसलिए मेरी गणना और अनुभव के समीकरण के अनुसार देव आनंद और मोना सिंघा (कल्पना कार्तिक) की मुलाकात 1950 के मध्य में होनी चाहिए क्योंकि ‘बाज़ी’ 1 जुलाई 1951 को रिलीज हुई। देव आनंद ने अपनी आत्मकथा में कल्पना कार्तिक के साथ अपने विवाह के बारे में बहुत ज्यादा विस्तार से कुछ नहीं बताया। वर्णन को बस रोमांस एवं हंसी-ठिठोलियों तक सीमित रखा और यह भी कि सुरैया से वियोग के बाद उन्हें एक स्त्री के आलिंगन व आश्रय की ज़रूरत थी, लेकिन किसी खास तारीख, वर्ष, स्थान का वर्णन न करना प्रामाणिकता सिद्ध नहीं कर पाता। 1953 के उसी इंटरव्यू में कल्पना कार्तिक ने कहा कि उन्हें अभी केवल अपने फिल्मी कॅरिअर पर ध्यान देना है और उनके जीवन में ऐसा कोई नहीं है, जिसके साथ वे विवाह आदि के बारे में सोच सकें। देव आनंद के साथ अगर उनका कोई रिश्ता रहा भी होगा तो उसे कल्पना कार्तिक उजागर नहीं करना चाहती थीं। 1953 का यह इंटरव्यू आगे आने वाली घटनाओं का संयोजन है।
1951-1953 तक कल्पना कार्तिक देव आनंद के साथ तीन फिल्में कर चुकी थीं और चौथी फिल्म ‘टैक्सी ड्राइवर’ शुरू हो चुकी थी। कुछ इंटीरियर दृश्य पूर्वी अंधेरी के मोहन स्टूडियो में शूट हो रहे थे, जब दोनों ने अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण निर्णय लिया। इससे 15 दिन पहले वे मैरिज रजिस्ट्रार के यहां आवेदन दे चुके थे और इस विशेष दिन पूर्व निर्धारित योजना के तहत लंच ब्रेक के दौरान देव के इशारे पर कल्पना, मोहन स्टूडियो के प्रॉपर्टी रूम में चुपचाप पहुंच गईं। वहां मैरिज रजिस्ट्रार को पहले से ही बुलवा लिया गया था। एक अनुमान है कि यहां दो गवाह थे- एक, अमरजीत और दूसरे, कैमरामैन (डायरेक्टर ऑफ फोटोग्राफी) वी. रात्रा। विवाह की आवश्यक औपचारिकताएं पूरी करने के बाद वे वापस शूट के लिए रेडी हो गए। देव आनंद ने कल्पना को अंगूठी पहनाई, जिसे शूट शुरू होने पर रात्रा ने अंगुली से छुपाने को कहा, क्योंकि उस शॉट विशेष से पहले जाहिर है कल्पना की अंगुली में विवाह की अंगूठी नहीं थी। सो निरंतरता बनाए रखने के मद्देनजर ऐसा करना जरूरी हो गया था। टैक्सी ड्राइवर रिलीज हुई 5 नवंबर 1954 को। तो मैं अनुमान लगा सकता हूं कि देव आनंद और कल्पना कार्तिक की शादी 1954 की पहली तिमाही में या एक तुक्का लगा रहा हूं कि जनवरी 1954 में सम्पन्न हुई होगी। इसके बाद देव आनंद और कल्पना कार्तिक की दो और फिल्में आईं- हाउस नंबर 44 और नौ दो ग्यारह। फिर इसके बाद परिवार और गृहस्थी की खातिर कल्पना कार्तिक ने फिल्मों में काम करना बंद कर दिया कल्पना शायद पहली अभिनेत्री रही हैं, जिन्होंने जिन कुल 6 फिल्मों में काम किया, उन सभी में उनका एक ही हीरो रहा- देव आनंद। वही एक ऐसी हीरोइन हैं, जिन्होंने सारी फिल्में एक ही हीरो के साथ कीं और जो उनका हीरो रहा, वो ही उनका पति भी बना। फिल्मों में हीरो बन जाना मुश्किल है, लेकिन उससे कहीं बहुत ज्यादा मुश्किल है एक अच्छा पति और पिता बन पाना! इस लेख के लिए मुझे काफी शोध करना पड़ा, क्योंकि कोई जानकारी उपलब्ध नहीं थी और जो जानकारी इंटरनेट पर है, वह मिथ्या है। आशा है मेरी मेहनत व्यर्थ नहीं जाएगी।