- August 11, 2024
पीएम आवास के सपने का सच…झोपड़े में जिंदगी गुजार रहा परिवार, बारिश में वह भी ढह गया, 5 साल पहले पट्टा मिला, लेकिन मकान अब तक नहीं बना, सिस्टम को शर्म आनी चाहिए
ट्राईसिटी एक्सप्रेस। न्यूज
देश जब 2047 तक विकसित भारत का सपना संजो रहा है, ऐसे समय में बेमेतरा जिले के ग्राम सोंढ़ में एक गरीब परिवार की कहानी सामने आई है। परिवार बेहद गरीब है। कोई भी सरकारी मदद इस परिवार तक नहीं पहुंच पा रही है। यह केवल एक परिवार नहीं है, ऐसे हजारों-लाखों परिवार देश में होंगे, जिनके पास सिफारिश नहीं होने की वजह से सरकारी योजनाओं और सुविधाओं के लाभ से उन्हें वंचित रखा जा रहा है। इसकी कहीं कोई न जांच हो रही हैं, न ही मदद दिलाने के लिए कोई सामने आ रहा है।
ये कहानी है बेमेतरा जिले के ग्राम सोंढ़ में निवास करने वाले शंभूराम हिरवानी की। भीषण गरीबी और भुखमरी में जीवन यापन करने उनका परिवार मजबूर है। पत्नी अग्घन बाई पिछले करीब 3 साल से बीमार है। बिस्तर पर है, वहीं बेटे विनोद का एक पैर काम करने के दौरान कट चुका है। अब वह विकलांग हो चुका है। उसे अब सहारे की जरुरत है। विनोद रायपुर में एक विंद्धवासिनी नामक कंपनी में लोहे का कबाड़ छांटने का काम करता था। एक हादसे में उसका पैर कट गया, तो कंपनी ने घर बैठा दिया। अब इस परिवार के पास गुजर-बसर करने के लिए भी पैसे नहीं है। सरकारी अनाज से ही गुजर-बसर हो रही है। मकान भी कच्चा है, जो पिछले दिनों हुई बारिश के बाद ढह गया। अब एक ही कमरे में पूरा परिवार जैसे-तैसे जिंदगी काट रहा है। जानकारी के बाद ट्राईसिटी एक्सप्रेस के पत्रकार योगेश कुमार तिवारी उनके गांव पहुंचे। इन परिवार से मिले, जो जानकारी हमें मिली थी, वह पूरी तरह सच थी। यह परिवार मुफलिसी के अंधेरे में सिर्फ मौत की प्रतीक्षा कर रहा है, क्योंकि इनके पास रहने के लिए न छत है, न रोजगार है और न ही खाने के लिए पैसे। जैसे-तैसे जीवन यापन कर रहा है।
6 साल पहले पीएम आवास के लिए जमीन का पट्टा, लेकिन मकान नहीं बना
शंभू राम बताते हैं कि रमन सरकार में उन्हें पीएम आवास के लिए पट्टा जारी किया गया। इसके बाद बाद उन्होंने आवास बनाने के लिए आवेदन किया। फिलहाल आवेदन क्रमांक 504 है। आवास का प्रकरण स्वीकृत हो चुका है, लेकिन पैसा अब तक जारी नहीं हुआ है। पिछले करीब 5 सालों से आवास के लिए परिवार सिर्फ चक्कर काट रहा है, जबकि सिफारिश के मामलों में आवेदन स्वीकृत भी हो गए, पैसा भी जारी हो गया, मकान बन भी गया। लेकिन शंभूराम को अब भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आवास योजना में अपना खुद का मकान बनने का इंतजार है। अब भी वे इस आस में हैं कि उनका मकान बनेगा, वे अपनी पत्नी और बेटे के साथ इस मकान में रहेंगे। इसे लेकर वे लगातार पंचायत दफ्तर के काट रहे हैं।
सिस्टम का सबसे बड़ा फैलियर
योजना के पहले चरण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने 1.18 करोड़ घर बनाने की मंजूरी दी थी। उनमें से करीब 85 लाख घर बन चुके हैं। शेष का काम चल रहा है। बता दें कि भाजपा की सरकार ने पिछले 10 सालों में 4.21 करोड़ सरकारी आवास बनाने का दावा किया है। इसके अलावा इस साल यानी 2024 में 3 करोड़ आवास और बनाने की स्वीकृति प्रदान की है। यानी भाजपा शासनकाल में 7.21 करोड़ मकान गरीबों के लिए बनाए जा रहे हैं, लेकिन इसका लाभ सिर्फ उन तक पहुंच रहा है, जो किसी न किसी तरह की सिफारिश लेकर पहुंच रहे हैं। सामान्य गरीब पात्र आवेदनकर्ता को सिर्फ दफ्तरों के चक्कर लगवाए जा रहे हैं। ऐसे गरीब परिवारों की आस अब टूटने लगी है। चप्पल घिस चुके हैं। बता दें कि यह सिस्टम का सबसे बड़ा फैलियर है। सरकारी सुविधाओं और योजनाओं का लाभ उन्हीं तक पहुंच पा रहा है, जिनके पास सिफारिश है। 70 से 90 प्रतिशत तक मामलों में यही हो रहा है। सामान्य गरीब पात्र हितग्राही जिनके पास सिफारिश नहीं है, वे पार्षद, जनपद सदस्य, जिला पंचायत सदस्य, पंच, सरपंच, मेयर, अध्यक्ष, विधायक, सांसद, मंत्री या अफसरों और अधिकारियों की सिफारिश लिखवाकर नहीं ला पा रहे हैं या फिर इनकी जेबें गर्म नहीं कर रहे हैं। उन्हें सरकारी योजनाओं के लाभ के लिए सिर्फ चक्कर काटने पड़ रहे हैं। देश में ऐसे कई शंभूराम हैं, जिन्हें देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अब भी आस है कि वे ऐसे सिस्टम में बैठे दीपकों का इलाज करेंगे।