• August 15, 2024

भिलाई में एक बार फिर जनभावनाओं ने खिलवाड़, सत्ता और स्वार्थ हावी, तीन कांग्रेसी पार्षदों ने संगठन छोड़ा, मेयर पर लगाया उपेक्षा का आरोप

भिलाई में एक बार फिर जनभावनाओं ने खिलवाड़, सत्ता और स्वार्थ हावी, तीन कांग्रेसी पार्षदों ने संगठन छोड़ा, मेयर पर लगाया उपेक्षा का आरोप

ट्राईसिटी एक्सप्रेस। न्यूज

हर बार की तरह भिलाई निगम के जनप्रतिनिधियों की पद लोलुप्ता, सत्ता और स्वार्थ की परवान चढ़ रहा है। राज्य में भाजपा की सरकार बनते ही जनभावना के खिलाफ जाकर कुछ जनप्रतिनिधि भिलाई निगम की शहर सरकार को हिलाने की कोशिश में जुट गए हैं। अपने आकाओं के इशारे पर यह खेल चल पड़ रहा है। इन सबमें एक बार फिर पार्षद हरिओम तिवारी है। बता दें कि हरिओम तिवारी पहले कभी भाजपा से पार्षद रहे। इसके बाद एक आपराधिक मामले में जेल की हवा खाई। वहीं से छूटने के बाद उन्होंने वार्-3 से निर्दलीय चुनाव लड़ा। वे जीतकर आए। इसके बाद कांग्रेस के राज्य में काबिज होने की वजह से उन्होंने कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता ली। अब जब कांग्रेस की जमीन खिसकती दिख रही है, तो वे और कुछ अन्य पार्षद कांग्रेस से किनारा करते दिख रहे हैं। उन्होंने महापौर नीरज पाल पर उपेक्षा का आरोप लगाया है। इतना ही नहीं खुलकर शहर सरकार की कमियां गिना रहे हैं। उनके अलावा वार्ड-6 के पार्षद रविशंकर कुर्रे और वार्ड-9 की पार्षद रानू साहू ने निगम कमिश्नर से मुलाकात की। इस दौरान उन्होंने चर्चा की। इस बीच तीनों ने  कांग्रेस से  इस्तीफा दे दिया है। खबर है कि उन्होंने प्रत्यक्ष और वॉट्सएप ग्रुप में मैसेज कर जिलाध्यक्ष और भिलाई महापौर को इस्तीफा सौंप दिया है।

इस्तीफे के बाद से भिलाई निगम में सियासी घमासाना तेज हो गया है। तीनों पार्षद मेयर नीरज पाल और जिलाध्यक्ष मुकेश चंद्राकर से भी मिल चुके हैं। बता दें कि भिलाई निगम की पार्षद और महिला एवं बाल विकास विभाग की एमआईसी मेंबर मीरा बंजारे ने भी कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने अपना इस्तीफा कांग्रेस जिलाध्यक्ष मुकेश चंद्राकर को सौंपा है। उन्होंने अपने इस्तीफे में लिखा है कि पिछले ढाई सालों से वो मैं वार्ड में एमआईसी मेंबर के रूप में काम कर रही है। इसके बाद भी वो विकास, सम्मान और समर्थन के लिए उपेक्षित महसूस कर रही हैं। वो अपनी पार्टी के जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों से लगातार विकास की मांग कर रही हैं, लेकिन उनके क्षेत्र में विकास नहीं किया जा रहा है। विधानसभा चुनाव में पार्टी का काम करने तक से मना कर दिया गया। उनके ही वार्ड में दूसरे क्षेत्र के लोगों से चुनावी कार्य करवाकर उन्हें अपमानित किया। इसके घटनाक्रम के बाद अब यह चर्चा यह है कि क्या शहर सरकार के अल्पमत में आने का खतरा है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इसका बहुत अधिक कांग्रेस को नहीं पड़ेगा। हालांकि भाजपा के कुछ नेता अब भी कांग्रेसी पार्षदों और निर्दलीय पार्षदों को तोड़ने की जुगत में हैं। बता दें कि वैशालीनगर के वर्तमान विधायक रिकेश सेन लंबे समय से निगम की राजनीति करते रहे हैं। उनकी निगम में सक्रिया किसी से छिपी नहीं है। नेता प्रतिपक्ष रहते हुए उन्होंने कई मोर्चों पर जमकर हंगामा मचाया। यहां तक निगम में चेंबर के लिए आंदोलन भी किया। वे अलग-अलग क्षेत्रों से पार्षद चुनकर आते रहे हैं। यहां तक पार्टी से जब उन्हें टिकट नहीं​ मिली थी, तो वे निर्दलीय भी चुनाव में मैदान में उतरे और पार्षद का चुनाव जीतकर आए। इसके बाद भी भाजपा ने उन्हें विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार घोषित किया। पहले वे सरोज पांडेय के करीब रहे। इसके बाद बाद पूर्व मंत्री प्रेम प्रकाश पांडेय के खेमे में शामिल होने का प्रयास करते रहे, लेकिन जब वहां भी बात नहीं बनी, तो उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान स्पीकर डॉ. रमन सिंह से संपर्क साधा। इसके बाद उनकी चल निकली। फिलहाल वे विधायक है। और एक तेजतर्रार नेता के रूप में उभर रहे हैं। वर्तमान में भिलाई के सभी बड़े नेताओं की किरकिरी बने हुए हैं। उनकी कार्यप्रणाली के चलते जनता उन्हें हाथों हाथ ले रही है। उनका जनाधार तेजी से बढ़ा है। इसके अलावा राज्य और दिल्ली में भी राजनीतिक कद में बढ़ोतरी हुई है। कई मोर्चा में उन्होंने अपनी काबीलियत सिद्ध की है। इस समय  भिलाई नगर पालिक निगम में कुल 70 वार्ड हैं। चुनाव के समय भाजपा के 24 और कांग्रेस के पास 37 पार्षद थे। जब बहुमत की बारी आई, तो कांग्रेस ने निर्दलीय को मिलाकर 46 पार्षदों का बहुमत दिया। राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद कांग्रेस के दो पार्षदों की सदस्यता समाप्त हो चुकी है और एक ने इस्तीफा दे दिया है। इसके बाद कांग्रेस के पास 43 पार्षद ही बचे। पिछली एमआईसी की बैठक के बाद निर्दलीय में से पार्षद 4 और भाजपा के समर्थन में आ गए। वर्तमान में भाजपा (विपक्ष) के 29 और कांग्रेस (सत्ता पक्ष) के पास 39 पार्षद हैं। यदि कांग्रेस के 4 पार्षद और भाजपा में शामिल हुए, संख्या बढ़कर 33 और कांग्रेस के पास 35 पार्षद रह जाएंगे। ऐसे में शहर सरकर को संकट में डालने की गणित में कुछ राजनीतिक चाणक्य काम कर रहे हैं।


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