- August 12, 2024
मालवीय नगर में करीब 10 एकड़ की सरकारी नजूल भूमि पर अवैध रूप से प्लाट काटकर बेच दिया, बिना बिल्डिंग परमिशन के तन गए बंगले, सरकारी को करोड़ों का चूना, जहां खाली जमीन दिखी उसे कब्जा ली
ट्राई सिटी एक्सप्रेस। न्यूज
मालवीय नगर दुर्ग जैसी पौश कॉलोनी जहां वाइट कॉलर का दिखावा कर बड़े पूंजीपति लोग निवास करते हैं। उसका असली चेहरा सामने आया है। यह करीब 10 एकड़ की सरकारी नजूल जमीन पर अतिक्रमण कर प्लॉट काटकर बेच दिया गया। यह काम पूरी तरह से अवैध तरीके से किया गया। इतना ही भी बिल्डिंग परमिशन के बंगले तान दिए गए। जहां जगह दिखी, उसे कब्जा ली गई। तत्कालीन संभाग आयुक्त द्वारा कराई गई जांच में इसका खुलासा हुआ, लेकिन ऊंचे रसूख रखने वाले इन लोगों के खिलाफ कहीं कोई करवाई आज तक नहीं हुई, जबकि कब्जा हटाने के निर्देश भी हो चुके हैं। इस मामले को लेकर भाजपा के वरिष्ठ नेता सतीश समर्थ, निगम के पूर्व पार्षद व पूर्व नेता प्रतिपक्ष संजय जे. दानी, विमलेश कुमार जैन ने मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय, नगरीय निकाय मंत्री अरुण साव और वित्तमंत्री ओपी चौधरी से शिकायत की है। उन्होंने बताया कि मालवीय नगर दुर्ग स्थित भूखंड आबंटन एवं मकानों के निर्माण के संदर्भ में दुर्ग जिला गृह निर्माण मर्यादित समिति, राजनांदगांव द्वारा निर्मित भूखण्डों एवं मकानों के आबंटन के संदर्भ में की गई अनियमितताएं एवं नियमों को ताक में रखकर राज्य शासन को करोड़ों रुपए के प्रब्याजी एवं भूभाटक राजस्व की क्षति एवं नजूल भूमि पर अवैध कब्जा के माध्यम से आवासधारकों को दिग्भ्रमित व अंधकार में रखकर समिति द्वारा मकानों एवं भूखण्डों का आवंटन किया गया। इस संदर्भ में सूचना के अधिकार नियम 2005 के तहत ली गई जानकारी में इसका खुलासा हुआ है। उन्होंने बताया कि वर्ष 1960-61 में दुर्ग जिला गृह निर्माण मर्यादित समिति, राजनांदगांव द्वारा मध्य प्रदेश शासन से दुर्ग जिले में आवासीय कालोनी बनाने हेतु शासकीय भूमि की मांग की गई, जिस पर सचिव मध्य प्रदेश शासन द्वारा खसरा क्रमांक 1356/1, 2, 3, 1357, 1358 व 1359 ग्राम व जिला दुर्ग हलका क्रमांक 24, की 4.74 एकड़ जमीन लगभग 2,06,000 वर्गफीट आवासीय प्रयोजन हेतु मालवीय नगर क्षेत्र में प्रदान की गई थी। जिस पर संस्था द्वारा ग्राम एवं निवेश विभाग के अंतर्गत प्राप्त पट्टे की अनुबंध की शर्तों के तहत सड़क, नाली, व गार्डन, सिवरेज लाईन की भूमि को छोड़ कर आवासीय 3000 वर्गफीट के भूखण्डों पर भवन निर्माण कर देना था। परन्तु संस्था द्वारा जिला प्रशासन की स्वीकृत पट्टे की भूमि के बगल में अतिरिक्त पड़ी नजूल जमीन पर अवैध ढंग से (लगभग 10 एकड) पर निर्माण कर अपने अंशधारियों व सदस्यों को बेच दिया गया। तथा ग्राम एवं निवेश विभाग को दिए पट्टा विलेख की शर्तों का धडल्ले से उल्लंघन किया गया। यही नहीं पट्टा विलेख में कुल 30 आवासों की जानकारी दी गई जो कि 3000 वर्गफीट के बनने थे। संस्था के द्वारा कुछ रसूखदार अंशधारियों को 7600 वर्गफीट से 9000 वर्गफीट तक के भूखण्डों पर भवन निर्माण कर दिया गया एवं बचे सदस्यों को 4800 वर्गफीट का भूखण्ड पर भवन निर्माण कर दिया गया। इस प्रकार 39 भवनों का कुल क्षेत्रफल 1,62,000 वर्गफीट गार्डन, सड़क, नाली, निस्तारी गली को छोड़कर है। जो कि शासन द्वारा देय स्वीकृत पट्टे के 2,06,000 वर्गफीट में से 40% भूमि डेवलपमेंट हेतु छोडने पर 1,20,000 ही शेष रहती है, जबकि संस्था द्वारा स्वीकृत पट्टे की भूमि के अतिरिक्त बगल की नजूल जमीन पर भवनों का निर्माण कर वर्ष 1960-61 में बिक्री कर दिया गया। साथ ही इन बेचे गए भवनों पर लगने वाले प्रीमीयम, प्रब्याजी व भूभाटक की शासन द्वारा तय गणना की राशि को भी संस्था द्वारा वर्ष 2019-20 तक नहीं अदा की गई। जब इस संपूर्ण घटनाक्रम की जानकारी जनदर्शन के माध्यम से जिलाधीश महोदय के सम्मुख उठाई गई तब संस्था द्वारा आनन फानन में 30 लाख रुपये का चालान शासन के पक्ष में भुगतान किया गया व 15 लाख का अग्रिम भुगतान यह कहते हुए किया गया कि पट्ट का नवीनीकरण आगामी 30 वर्षों के लिए किया जाये। चूंकि नजूल विभाग की लापरवाही व सस्था की मिलीभगत से यदि पट्टा विलेख का अवलोकन जवाबदार अधिकारी किये होते तो विलेख क्रमांक 4 में स्पष्ट अंकित है कि शासन द्वारा देय पट्टे की प्रीमीयम व भूभाटक की राशि संस्था द्वारा पट्टा स्वीकृत होने के 6 माह के अंदर नहीं करती है तो स्वीकृत पट्टा स्वमेव निरस्त माना जावेगा। परंतु संबंधित विभागों द्वारा इस पर किसी भी प्रकार का ध्यान न देते हुए संस्था को लाभ पहुंचाने की दृष्टि से कार्यालय जिलाधीश की ओर से शासन को पट्टे का नवीनीकरण करने हेतु अनुशंसा की गई। इस संबंध में आवेदक (शिकायतकर्ता) द्वारा जिलाधीश को जनदर्शन में शिकायत पर 14 माह तक कार्यवाही न होने पर संभायुक्त (महादेव कावरे) को लिखित में इस संपूर्ण प्रकरण की शिकायत की गई एवं उचित कार्यवाही करने हेतु मांग की गई। संभायुक्त महोदय द्वारा प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए 15 दिवस के भीतर 4 राजस्व निरीक्षकों की टीम बना कर संपूर्ण मामले की जांच करवा कर संस्था के द्वारा किये गए अवैध नजूल जमीन पर कब्जा व निर्माण की शिकायत को सही पाया व उस पर शिकायत शाखा को तत्काल अग्रिम कार्यवाही करने हेतु निर्देशित किया। इस संपूर्ण जांच में संस्था द्वारा लगभग 10 एकड अतिरिक्त जमीन पर कब्जा कर भूखण्डों की बिक्री व आवास निर्माण कर राज्य शासन के राजस्व में करोडो रुपये की क्षति पहुंचाई गई व इस 10 एकड (लगभग 4,46,000 वर्गफीट) भूमि जिसका की वर्तमान बाजार मूल्य लगभग 10 हजार रुपये प्रतिवर्ग फीट है के हिसाब से 446 करोड रुपये व इस 446 करोड रुपये की भूमि पर वर्ष 1960-61 से आज तक के प्रीमीयम, प्रब्याजी व भूभाटक की 15% की दर से चक्रवृद्धि व्याज का दण्ड शुल्क की गणना की जाए तो यह राशि अरबों में चली जाएगी। जिस पर आज तक ना तो जिलाधीश कार्यालय, नजूल विभाग व न ही संबंधित राजस्व मंत्रालय की जानकारी में यह बात नहीं जाना शंका का विषय है। चूंकि यह संस्था दुर्ग जिला गृह निर्माण मर्यादित समिति दुर्ग जिले के फर्म एवं रजिस्ट्रार विभाग के अंतर्गत रजिस्टर्ड है। एवं संबंधित संस्था को अपने सभी लेखा, आडिट रिपोर्ट, सदस्यों की संख्या व पदाधिकारियों की जानकारी प्रतिवर्ष देनी होती है। जब संबंधित विभाग से सूचना के अधिकार के अंतर्गत इस संस्था के संबंध में शासन से प्राप्त पट्टे व संस्था के सदस्यों की जानकारी चाही गई तब फर्म एवं रजिस्ट्रार के अधिकारी द्वारा संस्था के पट्टे के संबंध में जानकारी न होना लिखित में बताया गया एवं यह जानकारी दी गई कि वर्ष 2019 से आज तक उपरोक्त संस्था का चुनाव नहीं हुआ है और न ही पदाधिकारियों की लिस्ट विभाग को भेजी गई है। इन तमाम लापरवाहियों एवं विसंगतियों को शिकायत मिलने पर जिलाधीश द्वारा उपरोक्त संस्था के संचालन हेतु फर्म एवं रजिस्ट्रार के वरिष्ठ निर्देशक की नियुक्ति की गई जिस पर भी संस्था की लापरवाहियों व खामियों पर किसी भी प्रकार का सुधार नहीं हुआ। चूंकि वर्ष 1960-61 में मध्यप्रदेश शासन द्वारा उपरोक्त नगर, दुर्ग के मोहन नगर व संस्था को दुर्ग जिले के भिलाई नेहरु नगर, दुर्ग के मालवीय नगर, दुर्ग के पंचशील नगर व संपूर्ण छत्तीसगढ़ क्षेत्र में आवासीय भूखण्डों पर भवन निर्माण हेतु जमीन दी गई। यहां यह गंभीर चिंतन का विषय है कि जब संस्था द्वारा मालवीय नगर क्षेत्र में 10 एकड शासकीय भूमि पर अवैध कब्जा कर भूखण्डों की बिक्री की जा सकती है तो इन्ही के द्वारा वर्ष 1960-61 में मिलाई नेहरु नगर, दुर्ग मोहन नगर, दुर्ग पंचशील नगर में संस्था द्वारा निर्मित समस्त कालोनियों की शासन द्वारा स्वीकृत पट्टे से मिलान कर जितनी भी अतिरिक्त भूमि पर कब्जा कर अवैध निर्माण किया गया है उन समस्त भूमि के वर्तमान मूल्य व प्रीमीयम व प्रब्याजी की 60 वर्षों की 15% की दर से गणना की जाए तो लगभग यह संपूर्ण राशि खरबों में चली जाएगी। जो कि छत्तीसगढ़ शासन के वार्षिक बजट की राशि के समतुल्य होगी। वर्तमान में यह विषय गंभीर है कि संस्था की वर्तमान मैनेजर श्रीमती नीरु सिंधुरे जो कि संस्था की समस्त लेन-देन, लेखा-जोखा व शासकीय, अर्धशासकीय पत्रों पर किस हैसियत से हस्ताक्षर कर रही है व संस्था को चला रही है। जबकि उपरोक्त संस्था विगत 4 वर्षों से बगैर चुनाव हुए व पदाधिकारी विहिन है। ऐसी परिस्थिति में उपरोक्त प्रबंधक के हस्ताक्षर व शासकीय दस्तावेज व शपथ पत्र किसी भी विभाग में मान्य नहीं होंगे। पिछले कुछ दिनों पर संस्था की प्रबंधक द्वारा दुर्ग के एक अंशधारी को आवास क्रमांक 2 की फर्जी एन.ओ.सी (2400 वर्गफीट) देकर दुर्ग उप पंजीयक द्वारा उक्त भूखण्ड की रजिस्ट्री की गई। शिकायत करने पर आयुक्त महोदय के सम्मुख संस्था की प्रबंधक द्वारा लेखा त्रुटि होने का कारण बताते हुए 2 नंबर के आवास की एन.ओ.सी को 10 नंबर के आवास के बगल में होना बताया। जबकि संभागीय आयुक्त महोदय द्वारा अपने जांच प्रतिवेदन में अपने चारों राजस्व निरीक्षकों के लिखित जांच प्रतिवेदन में यह पाया कि संस्था द्वारा जारी एन.ओ.सी का चौहद्दी का मिलान करने पर रजिस्ट्री की गई जमीन की चौहद्दी में भिन्नता पाई गई एवं क्रेता द्वारा बताई गई भूमि शासकीय नजूल जमीन होना पाया गया। जिस पर संभायुक्त महोदय द्वारा राजस्व निरीक्षक व पटवारी नक्शा का मिलान कर जांच करने पर यह पाया गया कि उपरोक्त संपूर्ण जमीन शासकीय जमीन होना पाया गया जिसे संस्था द्वारा अपनी बताकर गलत तरीके से भूखण्ड क्रमांक 39 दर्शाया गया है जबकि संस्था द्वारा पूर्व में भी 39 नंबर का आवास की एन.ओ.सी जारी की गई है। विमिलेश जैन ने उपरोक्त संस्था के काले कारनामों की गंभीरता से जांच कर दोषी लोगों पर कड़ी से कड़ी कार्यवाही की मांग की है। राज्य शासन को होने वाले अरबों रुपये की राजस्व की क्षति की वसूली कानूनी तरीके से की जावे व दोषी संस्था जिनके द्वारा शासन की करोडो रुपये की नजूल जमीन पर कब्जा किया गया है उस संस्था के सभी पदाधिकारी व अंशधारियों पर दण्डनीय अपराध कायम कर शासन को हुए क्षति की भरपाई कराने की अपील की है।