• March 14, 2023

जितना बड़ा पूर्व मंत्री हेमचंद यादव का कद, उससे कहीं ज्यादा निष्क्रिय उनके सुपुत्र जीत, समर्थकों में बढ़ने लगा असंतोष

जितना बड़ा पूर्व मंत्री हेमचंद यादव का कद, उससे कहीं ज्यादा निष्क्रिय उनके सुपुत्र जीत, समर्थकों में बढ़ने लगा असंतोष

ट्राई सिटी एक्सप्रेस। न्यूज

पूर्व मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा के बाद शहर ने किसी को जननेता माना तो वे थे हेमचंद यादव। भाजपा से तीन बार लगातार विधायक बने, मंत्री भी बने। गुटबाजी बाजी के चलते भाजपा के गढ़ कहे जाने वाले दुर्ग से उन्हें चौथी बार में हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद असमय उनकी मौत हो गई। उनके अंतिम संस्कार में पूरा शहर उमड़ा। आज भी शहर के गली, मोहल्ले, नुक्कड़ में उनके कामों और व्यक्तित्व की ही बातें होती हैं। विरोधी भी उनकी प्रशंसा करते नहीं थकते। ऐसे थे हेमचंद यादव, जिन्होंने दुर्ग में बीजेपी की स्थापित किया। इतनी बातें इसलिए कि उनके सुपुत्र जीत इन दिनों राजनीति में सक्रिय हुए हैं। उनसे हेमचंद यादव के समर्थकों की बड़ी अपेक्षाएं हैं। इन अपेक्षाओं के चलते ही उन्हें पिछले दिनों पार्टी हाई कमान से कहकर युवा मोर्चा का अध्यक्ष बनाया गया। ताकि वे अपने पिता के सपनों को आगे बढ़ा सकें। एक बार फिर भाजपा की जीत सुनिश्चित करा सकें, लेकिन उनके प्रारंभिक कार्यप्रणाली से हेमचंद यादव समर्थक चिंतित हो गए हैं।

निष्क्रियता ऐसी की न मंडलों में बैठक की और न ही अपनी टीम बनाई

जीत ने  अध्यक्ष बनने के बाद अब तक 13 में से एक भी मंडल में अधिकृत बैठक नहीं की है। न ही शेड्यूल बनाया गया है। इतना ही नहीं कार्यकारिणी तैयार की है। जबकि पार्टी के तरफ से 15 मार्च तक कार्यकारिणी तय करने के निर्देश भी हुए। इतना ही नहीं हर काम के लिए सिर्फ आश्वासन के अलावा कुछ नहीं हो रहा। इससे कार्यकर्ता ज्यादा नाराज हैं। खबर तो यह भी है कि मीडिया भी उनसे खासी नाराज चल रही है। बिना नेता बने ही उनमें खासा एटीट्यूट है। इसे उनकी राजनीति के लिए सबसे बड़ा खतरा माना जा रहा है। अध्यक्ष बनने के बाद वे एक बार भी मीडिया के सामने। नहीं आए हैं। इसके अलावा गैर राजनीतिक और चम्मच छाप लोगों के बीच ज्यादा सक्रिय हैं, जो उन्हें सहीं जानकारी नहीं दे रहे हैं। जीत की कार्यप्रणाली से कुछ वरिष्ठ और हेमचंद समर्थक भी खासे नाराज चल रहे हैं, जो लगातार अपने तरह से जीत को समझाने की कोशिश भी कर रहे हैं, लेकिन उनकी निष्क्रियता बरकरार है।

गुटबाजी के चलते हासिए में बीजेपी

दुर्ग भाजपा में गुटबाजी अब भी हावी है। हेमचंद के समर्थक उनके जाने के बाद सांसद विजय बघेल के संपर्क में रहे, लेकिन वहां भी मनमुताबिक सम्मान और जगह नहीं मिलने से वे अलग थलग ही रहे। जितेंद्र वर्मा के अध्यक्ष बनने के बाद एक बार फिर उन्हें आस जगी। लेकिन जितेंद्र भी अपना एक अलग खेमा तैयार करने लगे। इसे हेमचंद समर्थकों को निराशा हाथ लगी। अब आस जीत से है, लेकिन उनकी निष्क्रियता ने चिंता बढ़ा दी है। इधर सरोज पांडे समर्थक भी उनसे नाराज चल रहे हैं, इसके चलते भी बीजेपी को खासा नुकसान पहुंचा है। इस वजह से बीजेपी में इस समय कोई दमदार नेता सामने नहीं है, जो कांग्रेस के दिग्गज नेता अरुण वोरा का मुकाबला कर सके। बीजेपी के अधिकांश नेताओं को शहर के प्रमुख मुद्दों का ही ज्ञान नहीं है, जिन्हें है वे अपरिहार्य कारणों से चुप्पी साधे हुए हैं। अब देखना है कि पार्टी के बड़े नेता इन सबका क्या समाधान तलाशते हैं


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