• May 27, 2023

सत्ता इतनी कमजोर कि झीरम घाटी की गुत्थी नहीं सुलझा पाई, श्रद्धांजलि के नाम पर कांग्रेस और भाजपा में सिर्फ राजनीति हो रही, जिनकी मौत हुई उनके परिवार आज भी हत्या का सच जानना चाह रहे…क्या कभी सामने आएगा

सत्ता इतनी कमजोर कि झीरम घाटी की गुत्थी नहीं सुलझा पाई, श्रद्धांजलि के नाम पर कांग्रेस और भाजपा में सिर्फ राजनीति हो रही, जिनकी मौत हुई उनके परिवार आज भी हत्या का सच जानना चाह रहे…क्या कभी सामने आएगा

ट्राई सिटी एक्सप्रेस। न्यूज

25 मई 2013 जिसे आज भी पूरा छत्तीसगढ़ भूला नहीं है। केंद्र में कांग्रेस और राज्य में भाजपा की सरकार थी। नेता कोई भी रहा हो तुष्टिकरण दोनों दलों में समान रूप से हावी रहा, तभी तो घटना के 10 साल बाद भी वास्तविक कारणों का पता ही नहीं चल सका। कांग्रेस के बड़े नेताओं के मार्ग से गुजरने से लेकर नक्सली हमले और इसमें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से शामिल लोगों के बारे में आज भी सिर्फ कहासुनी हो रही है। मुख्य मास्टर माइंड से लेकर अन्य बातें छिपी हुई हैं। सत्ता का मजबूत सिस्टम इसे खोज नहीं पाया है। ऐसे में कैसे जनता का विश्वास ऐसी सुरक्षा एजेंसियों पर बनेगा। लोग सरकार पर भरोसा करेंगे। बातें इशारे में जरूर हैं, लेकिन आम जनता को समझाने के लिए काफी हैं। समझना हमें होगा आखिर चयन किसका करना है।

जानिए पूरा घटनाक्रम

वह दिन जो हर साल अपने साथ एक भीषण खूनी संघर्ष की याद वापस लेकर आता है। देश के सबसे बड़े आंतरिक हमलाें में से एक झीरम हत्या कांड। छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में सात साल पहले हुई इस नक्सल घटना ने सबको झकझोर कर रख दिया था। 25 मई 2013 की शाम को हुए इस हमले में 32 लोग अपनी जान गंवा बैठे थे। हमले में जान गंवाने वाले ज्यादातर छत्तीसगढ़ कांग्रेस के शीर्ष नेता थे, जिनकी स्मृतियां ही आज हम सब के बीच बाकी रह गई हैं। यह देश का दूसरा सबसे बड़ा माओवादी हमला था। यह हमला बस्तर जिले के दरभा इलाके के झीरम घाटी में कांग्रेस के परिवर्तन यात्रा पर हुआ था।

25 मई 2013, करीब 5 बजे का समय था। भीषण गर्मी के बीच लोग अपने घरों और कार्यालयों में पंखे-कूलर की हवा के नीचे बैठे थे। इसी बीच अचानक टीवी पर एक खबर आई। छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के झीरम घाटी में करीब डेढ़ घंटे पहले एक माओवादी हमला हुआ था। यूं तो यहां आज भी रोजाना माओवादी हिंसा होती है, लेकिन यह घटना उन घटनाओं से कहीं अधिक खौफनाक और भीषण थी। प्रारंभिक खबर आने के करीब 15 मिनट बाद अपडेट खबर आई। इस खबर में बताया गया कि माओवादी हमले में बस्तर टाइगर के नाम से मशहूर कांग्रेसी नेता महेन्द्र कर्मा और नंद कुमार पटेल सहित कई लोग मारे गए हैं। विद्याचरण शुक्ल की हालत गंभीर है।

इसके बाद धीरे-धीरे खबर का दायरा बढ़ने लगा। रात करीब 10 बजे जब यह जानकारी आई कि हमले में कुल 32 लोग मारे गए हैं, तो लोगों को इस खबर पर भरोसा कर पाना मुश्किल हो रहा था। एक-एक कर घटना में मारे गए लोगों के नाम सामने आने लगे। इनमें वे नाम थे जो उस वक्त छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस के पहली कतार के नेता थे। यह देश के इतिहास का दूसरा सबसे बड़ा नक्सल हमला था। आज इस हमले की छठवीं बरसी मनाई जा रही है।

घटना को भले ही 10 साल हो गए, लेकिन इसके जख्म आज भी पूरी तरह ताजा हैं। घटना की जांच लंबे समय तक अटकी रही और फिर राज्य में कांग्रेस की सरकार के सत्ता में आने के बाद इसकी जांच फाइल दोबारा खोली गई है। इस घटना में कुछ नक्सली लीडर के नाम सामने आए, जिनपर एनआईए ने भी नगद इनाम की घोषणा की है, लेकिन इनमें से कुछ को छोडकर अधिकांश नक्सली पकड़ में नहीं आए हैं।

नवंबर 2013 में राज्य में विधानसभा चुनाव होने थे। आपसी अंतरकलह से उबर कर एकजुटता दिखाते हुए कांग्रेस राज्य में परिवर्तन यात्रा निकाल रही थी। इस यात्रा में तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस के सभी वरिष्ठ नेता शामिल थे। अलग-अलग इलाकों से होते हुए कांग्रेस की यह यात्रा नक्सलियों के गढ़ से गुजर रही थी। 25 मई को प्रदेश कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, उनके बेटे दिनेश पटेल, दिग्गज कांग्रेसी विद्याचरण, शुक्ल, बस्तर टाइगर महेंद्र कर्मा और बहुत सारे नेताओं के साथ यात्रा पर थे।

सुकमा जिले में एक सभा के बाद सभी नेता सुरक्षा दस्ते के साथ काफिला लेकर अगले पड़ाव के लिए निकले थे। काफिले में सबसे आगे नंदकुमार पटेल, उनके बेटे दिनेश पटेल और कवासी लखमा (वर्तमान में राज्य में आबकारी मंत्री) सुरक्षा गार्ड्स के साथ आगे बढ़ रहे थे। पीछे की गाड़ी में मलकीत सिंह गैदू और बस्तर टाइगर महेन्द्र कर्मा सहित कुछ अन्य नेता सवार थे। इस गाड़ी के पीछे बस्तर के तत्कालीन कांग्रेस प्रभारी उदय मुदलियार कुछ अन्य नेताओं के साथ चल रहे थे।

इस काफिले में सबसे पीछे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता विद्याचरण शुक्ल एनएसयूआई के दो नेताओं देवेन्द्र यादव (अब भिलाई से विधायक) व निखिल कुमार के साथ थे। इस पूरे काफिले में करीब 50 लोग शामिल थे। दोपहर 3 बजकर 50 मिनट पर यह काफिला घने जंगलों से घिरी झीरम घाटी पर पहुंचा। अचानक दोनों से ओर से बंदूक से चली गोलियों की आवाज गूंजने लगी। काफिले में सबसे आगे चल रही गाड़ी को नक्सलियों ने पहला निशाना बनाया।

इस घटना में पीसीसी के वर्तमान अध्यक्ष नंदकुमार पटेल और उनके बेटे दिनेश की मौके पर ही मौत हो गई। इसके बाद लगातार गोलियों की आवाज झीरम घाटी में गूंजने लगी। करीब एक घंटे तक गोलियां बरसती रहीं। मौत का तांडव जारी था। एक के बाद एक काफिले की गाड़ियां इस गोलीबारी की जद में आती रहीं। घाटी के दोनों ओर ऊंची पहाड़ियों में चढ़कर सैकड़ों नक्सली अंधाधुंध गोलियां बरसा रहे थे। करीब 1 घंटे बाद गोलीबारी बंद हो गई। अब तक मीडिया के जरिये यह खबर पूरे देश में फैल चुकी थी। सुरक्षा बल मौके पर पहुंचे तो दूर-दूर तक सिर्फ लाशें बिखरी पड़ी थीं।

एक ओर वरिष्ठ कांग्रेसी नेता विद्याचरण घायल अवस्था में पड़े थे। महेंद्र कर्मा, नंदकुमार पटेल, दिनेश पटेल, उदय मुदलियार सहित कई बड़े नेता हमले में मारे जा चुके थे। टीवी और न्यूज पोर्टल पर उस भयावह मंजर की तस्वीरें अब नजर आने लगी थीं। रात बजे तक पूरे राज्य में शोक की लहर दौड़ पड़ी। घटना की पूरी कहानी अब स्पष्ट हो चुकी थी। किसी ने अंदाजा भी नहीं लगाया था कि छत्तीसगढ़ में माओवादी इतनी बड़ी घटना को अंजाम दे सकते हैं, लेकिन यह एक कड़वी सच्चाई थी।

घायल विद्याचरण कोमा में रहने के बाद करीब 2 माह बाद इस दुनिया से चले गए। घटना में कई नेताओं के साथ ही कुल 32 लोग मारे गए थे। इस रक्त रंजिश घटना को आज 10 साल पूरे हो चुके हैं। मामले की जांच आज भी चल रही है, लेकिन अब तक पूरे षणयंत्र का खुलासा नहीं हो पाया है। इस घटनाक्रम के अंदर की कहानी आज भी अनसुलझी ही है।

 


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