- June 3, 2023
आधुनिकता के इस दौर में जब 3 से 5 किलोमीटर पहले ही ट्रैक लोकेशन पता चल जाता है, तब ओडिशा में इतनी बड़ी चूक कैसे
ट्राई सिटी एक्सप्रेस। न्यूज
रेलवे के जानकारों का कहना है कि इस हादसे के पीछे दो कारण नजर आ रहे हैं। पहला- मानवीय भूल और दूसरा- तकनीकी खराबी। इस हादसे के पीछे तकनीक में खराबी को अब तक बड़ी वजह माना जा रहा है। सिग्नल सिस्टम की खराबी की वजह से दो ट्रेनें एक ही पटरी पर आ गईं और उनमें टक्कर हो गई…यदि ऐसा है भी तो रेलवे इतना केजुवल कैसे हो सकता है। घटना के 48 घंटे बाद भी घटना के वास्तविक कारणों तक पहुंचा नहीं जा सका है। इसे पूरे मामले में रेलवे का फेलियर सामने आ रहा है। रेलवे के कर्मचारी और अधिकारी किस कदर काम के प्रति लापरवाह हो चले हैं, घटना ने साबित कर दिया है। अधिकारी और कर्मचारियों की कार्य के प्रति लापरवाही को लेकर लगातार शिकायतें भी होते रही है, लेकिन बड़े अफसरों ने गंभीरता नहीं दिखाई, जिसकी वजह से इतना बड़ा हादसा हो गया।
ओडिशा के बालासोर जिले में शुक्रवार रात भीषण रेल हादसा हो गया। हादसे की शिकार हुई ट्रेनों में एक मालगाड़ी के अलावा हावड़ा एक्सप्रेस और कोरोमंडल एक्सप्रेस शामिल थी। हादसे में कई लोगों की जान चली गई। हादसे की गंभीरता को देखते हुए युद्धस्तर पर बचाव और राहत कार्य चल रहा है। सेना को भी बचाव कार्यों में लगा दिया गया है। बताया जा रहा है कि कोरोमंडल एक्सप्रेस की टक्कर मालगाड़ी से हो गई। इसी वजह से इतना बड़ा हादसा हो गया। अब सवाल यह उठता है कि आखिर दो ट्रेनें एक ही पटरी पर कैसे आ गईं? इसके पीछे मुख्य वजह क्या है? यहीं नहीं, रेलवे लगातार स्टेशनों और ट्रैक पर अत्याधुनिक सिग्नल सिस्टम लगा रहा है। फिर यह हादसा कैसे हो गया?
बालासोर में कैसे एक के बाद एक हादसे का शिकार बनीं तीन ट्रेनें, क्या टल सकती थी अनहोनी?
पहले जानें कैसे तीन ट्रेनें आपस में भिड़ गईं?
यह हादसा बालासोर स्टेशन के नजदीक बहानगा बाजार स्टेशन के पास हुआ है। हादसे के समय आउटर लाइन पर एक मालगाड़ी खड़ी थी। हावड़ा से आ रही कोरोमंडल एक्सप्रेस (12841) जो चेन्नई जा रही थी, बहानगा बाजार से 300 मीटर पहले पटरी से उतर गई। हादसा इतना भयानक था कि कोरोमंडल एक्सप्रेस का इंजन मालगाड़ी पर चढ़ गया। इसके साथ ही कोरोमंडल एक्सप्रेस ट्रेन की पीछे वाली बोगियां तीसरे ट्रैक पर जा गिरीं। तभी इसी ट्रैक पर तेज रफ्तार से आ रही हावड़ा-बेंगलुरु एक्सप्रेस (12864) ट्रैक पर पड़ी कोरोमंडल एक्सप्रेस की बोगियों से बहुत तेजी से टकराईं।
एक पटरी पर दो ट्रेन कैसे आ जाती हैं
रेलवे के जानकारों का कहना है कि इस हादसे के पीछे दो कारण नजर आ रहे हैं। पहला- मानवीय भूल और दूसरा- तकनीकी खराबी। इस हादसे के पीछे तकनीक में खराबी को अब तक बड़ी वजह माना जा रहा है। सिग्नल सिस्टम की खराबी की वजह से दो ट्रेनें एक ही पटरी पर आ गईं और उनमें टक्कर हो गई। दरअसल, ड्राइवर ट्रेन को कंट्रोल रूम के निर्देश पर चलाता है और कंट्रोल रूम से निर्देश पटरियों पर ट्रैफिक को देख कर दिया जाता है।
डिस्प्ले पर ट्रेन का सिग्नल सही नहीं दिखाई दिया
देश के हर रेलवे स्टेशन के कंट्रोल रूम में एक बड़ी सी डिस्प्ले स्क्रीन लगी होती है, जिस पर दिख रहा होता है कि कौन सी पटरी पर कौन सी ट्रेन है और कौन सी पटरी खाली है। ये हरे और लाल रंग की लाइटों के माध्यम से दिखाया जाता है। जैसे अगर किसी पटरी पर कोई ट्रेन है या चल रही है तो वह लाल नजर आएगा और जो पटरी यानी रेलवे ट्रैक खाली है, वह हरा दिखाता है। इसी को देखकर कंट्रोल रूम से लोको पायलट को निर्देश दिए जाते हैं, लेकिन इस बार जैसे हादसा हुआ, उसे देख कर लग रहा है कि डिस्पले पर ट्रेन का सिग्नल सही नहीं दिखाई दिया और इसकी वजह से इतने लोगों ने अपनी जान गंवा दी।
रेलवे पर उठ रहे ये सवाल
रेलवे बोर्ड के पूर्व सदस्य कहते हैं कि आज के दौर में कई प्रकार की नई तकनीक आ गई है। पहले के हादसों में ट्रेनों के कोच एक-दूसरे उपर चढ़ जाते थे, लेकिन अब नए एंटी क्लाइम्बिंग कोच ट्रेन में लगाए गए हैं। यह एलएचबी कोच एक-दूसरे के ऊपर नहीं चढ़ते हैं। इसके बावजूद इस हादसे में इतने लोगों की मौत होना अपने आप में रेलवे के सिस्टम पर सवाल खड़ा कर रहा है। यह रेलवे का एक बहुत बड़ा ‘सिस्टमेटिक फेल्युअर’ है। आज रेलवे मंत्रालय सोशल मीडिया पर प्रचार कर रहा है कि रेल मंत्री एक ट्रेन में सफर कर रहे हैं, जिसमें ड्राइवर नहीं है, लेकिन जैसे ही ट्रेन की स्पीड बढ़ती है तो कवच नामक सिस्टम ट्रेन की गति को कंट्रोल कर लेता है। आज हर बजट में कवच और ट्रेनों के सिस्टम, ट्रैक और सिग्नल सिस्टम सुधारने के लिए करोड़ों का बजट आवंटित किया जाता है। इसके बावजूद यह हादसे कैसे हो जाते हैं?
दुर्घटना इतनी घातक कि ट्रेन को चीरते हुए अंदर घुसी पटरी, तस्वीरों में देखें हादसे का खौफनाक मंजर
दुर्ग के एक लोकोपायलेट कहते हैं कि आज रेलवे में सारा सिस्टम इलेक्ट्रॉनिक हो चुका है। जैसे ही गाड़ी पटरी पर आती है, तो पॉइंट और सिंगल लॉक हो जाते हैं। स्टेशन मास्टर चाहने के बाद भी वह नई गाड़ी को सिग्नल नहीं दे सकता। किसी भी यात्री गाड़ी को स्टेशन पर आने से पहले पांच से तीन किलोमीटर पहले ही सिग्नल मिलना शुरू हो जाते हैं। फिर यहां ट्रेन कैसे आ गई? इससे सवाल उठा रहा है कि या तो सिग्नल सिस्टम फेल हो गया या फिर इसमें किसी ने कोई छेड़छाड़ की।
दूसरा सवाल है कि अगर सिग्नल सही था, तो ट्रेन के ड्राइवर ने सिग्नल को क्यों नहीं माना। लाल सिग्नल होने के बाद भी ट्रेन कैसे चलाई। इसी वजह से हादसा हुआ। जब ट्रेन के डिब्बे पटरी पर पलटे हैं, तो पास वाली लाइन में अवरोध आना स्वाभाविक है। ऐसे में स्टेशन के अधिकारियों को तुरंत एक्शन लेते हुए वहां आने वाली ट्रेनों को रोकना चाहिए था। लेकिन रेलवे के अफसरों ने कोई कदम नहीं उठाया। यह हादसा उनकी लापरवाही का ही नतीजा है।
रेल मंत्री ने हादसे को लेकर कही ये बात
घटनास्थल पहुंचे रेल मंत्री ने कहा कि यह एक दर्दनाक हादसा है। रेलवे, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और राज्य सरकार बचाव कार्यों में जुटी हैं। बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराई जा रही हैं। मुआवजे का कल एलान कर दिया गया था। हादसे की जांच के लिए उच्च स्तरीय कमेटी बनाई गई है। साथ ही रेलवे सेफ्टी कमिश्नर भी घटनास्थल का दौरा करेंगे और इस बात की जांच करेंगे की हादसे की वजह क्या रही।
अलग-अलग तरह की बातें सामने आईं। हालांकि, अब कह जा रहा है कि कोरोमंडल एक्सप्रेस ने ट्रैक बदला था। जानिए, यह हादसा हुआ कैसे…
ओडिशा के बालासोर में शुक्रवार शाम तीन ट्रेनें दुर्घटनाग्रस्त हो गईं। घटना बाहानगा बाजार रेलवे स्टेशन के पास हुई। स्टेशन से कुछ दूरी तय करने के बाद एक ट्रेन मेन लाइन छोड़कर लूप लाइन में चली गई और हादसा हो गया। पहले ग्राफिक्स से समझिए कि हादसा हुआ कैसे…
कोलकाता से करीब 250 किलोमीटर दक्षिण और भुवनेश्वर से 170 किलोमीटर उत्तर में बालासोर जिले के बाहानगा बाजार स्टेशन के पास शुक्रवार शाम करीब सात बजे भीषण ट्रेन हादसा हुआ। इस हादसे का शिकार तीन ट्रेनें हुईं जिसमें कोरोमंडल एक्सप्रेस, बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस और मालगाड़ी शामिल हैं।
हुआ क्या है?
इस भयावह हादसे में कोरोमंडल एक्सप्रेस मालगाड़ी से टकरा गई। ट्रेन का इंजन मालगाड़ी के डिब्बे पर चढ़ गया। टक्कर के बाद कोरोमंडल एक्सप्रेस के 13 डिब्बे बुरी तरह छतिग्रस्त हो गए। इनमें सामान्य, स्लीपर, एसी 3 टियर और एसी 2 टीयर के डिब्बे शामिल थे। कुछ डिब्बे बगल के ट्रैक पर भी जा गिरे।
उस वक्त दूसरी ओर से बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस को गुजरना था। बेंगलुरु-हावड़ा एक्सप्रेस के ट्रैक पर कोरोमंडल एक्सप्रेस के डिब्बे गिरे हुए थे। इसकी वजह से बेंगलुरु-हावड़ एक्सप्रेस इन डिब्बों से टकरा गई। टक्कर के चलते बेंगलुरु-हावड़ा एक्सप्रेस के सामान्य श्रेणी के तीन डब्बे पूरी तरह क्षतिग्रस्त होकर पटरी से उतर गए। हादसे के बाद लोगों की चीख-पुकार शुरू हो गई। चारों तरफ खून से सने क्षत-विक्षत और अंगविहीन शव ही दिख रहे थे।
शुरुआती जांच क्या कह रही है?
कोरोमंडल एक्सप्रेस 128 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही थी। बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस 116 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से आ रही थी। दोनों ट्रेनों में लगभग दो हजार यात्री सवार थे। स्टेशन के आसपास ही लूप लाइन बनाई जाती हैं जो आम तौर पर 750 मीटर लंबी होती हैं ताकि एक से ज्यादा इंजन के साथ चलने वाली मालगाड़ियों को वहां खड़ा किया जा सके।
जहां हादसा हुआ, उस रूट पर कवच प्रणाली एक्टिव नहीं थी, जो एक ही ट्रैक पर दो ट्रेनों के आ जाने की स्थिति में हादसे को रोकती है। शुरुआती जांच कहती है कि सिग्नल मिलने के बाद कोरोमंडल एक्सप्रेस स्टेशन से रवाना हुई। आगे जाकर वह अप मेन लाइन छोड़कर लूप लाइन में चली गई, जहां मालगाड़ी पहले से खड़ी थी। यहां पर पहली भिड़ंत हुई और कोरोमंडल एक्सप्रेस के डिब्बे डाउन मेन लाइन पर आ गए, जहां दूसरी ट्रेन बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस आई। इसी वजह से कई लोगों की जान गई।