- December 13, 2024
राइस मिलर्स का सरकार को दो टूक, 20 दिसंबर तक जारी रहेगा असहयोग
ट्राईसिटी एक्सप्रेस। न्यूज
राइस मिलर्स और छत्तीसगढ़ सरकार की बातचीत अब भी असफल रही है। हालांकि सरकार द्वारा लगातार मिलर्स पर दबाव बनाने का प्रयास किया जा रहा है। खाद्य विभाग और राजस्व विभाग की टीमें गुपचुप तरीके से मिलों की जांच के लिए पहुंच रही हैं। कार्रवाई कर रही हैं, अलग-अलग तरीके से दबाव बनाने का प्रयास किया जा रहा है, लेकिन मिलर्स अपनी बातों को अड़े हुए हैं। गुरुवार को मिलर्स की बैठक में कई अहम विषयों पर चर्चा हुई। प्रदेश के सभी मिलर्स ने अपनी मांगें राज्य सरकार से सहमति मिलने उपरांत भी बकाया भुगतान, एसएलसी दर से परिवहन भुगतान एवं अन्य मांगे पूरी नहीं होने पर इस माह की 20 तारीख तक कस्टम मिलिंग कार्य में असहयोग करने का निर्णय लिया है । इस संबंध में प्रदेश एसोसिएशन अध्यक्ष योगेश अग्रवाल ने बताया कि आज दिनांक 12 दिसंबर को रायपुर के श्री राम मंदिर वीआईपी रोड के हाल में प्रदेश के समस्त मिलर्स की उपस्थिति में वृहद बैटक हुई जिसमे पूरे प्रदेश से लगभग 2500 राइस मिलर्स उपस्थित थे।
राज्य सरकार की कैबिनेट की बैठक में चावल उद्योग से संबंधित विषयों पर निर्णय लिया जिसमें मिलर्स को वर्ष 2024-25 की प्रोत्साहन राशि 80/- रुपये क्विंटल करने, मिलर्स को वर्ष 2023-24 के प्रोत्साहन की एक किस्त का भुगतान करने के साथ ही पेनाल्टी विषय पर निर्णय लिए गए । मिलर्स वर्ष 2022-23 के प्रोत्साहन की एक किस्त चाहते हैं जबकि कैबिनेट ने वर्ष 2023-24 के भुगतान पर मुहर लगा दी, साथ ही एसएलसी की दर से भुगतान का विषय कैबिनेट में नहीं रखा गया ।इन दो बड़ी मांगों पर पूर्व में राज्य सरकार के साथ चर्चा में सहमति के उपरांत भी मांगें पूर्ण नहीं होने पर मिलर्स का धैर्य टूट गया । बैठक में उपस्थित मिलर्स ने कहा कि यह मिलर्स के साथ वादा खिलाफ़ी है। एक तरफ़ मिलर्स में कैबिनेट होने के पूर्व उत्साह का वातावरण बना हुआ था की कैबिनेट में उनकी मांगें पूर्ण होंगी लेकिन कैबिनेट से जो निर्णय आया उससे पूरे प्रदेश के मिलर्स में निराशा का वातावरण बन गया । प्रदेश भर के मिलर्स ने मांग की है कि प्रदेश सरकार तत्काल निर्णय लेकर जिन विषयों में सहमति बनी उस पर अमल होकर समस्या का समाधान निकाल सके जिससे किसानों को भी कोई असुविधा ना हो । उल्लेखनीय है कि मिलर्स को कस्टम मिलिंग का बकाया भुगतान जो करोड़ों में है वह ना होने से उनकी आर्थिक स्थिति खराब है । मिलर के पास बैंक गारंटी बनाने , चावल जमा करने पैसा नहीं है ।ऐसी स्थिति में मिलर को भुगतान के अभाव में मिलर कस्टम मिलिंग कार्य करने असमर्थ हो चुका है । यह पहला अवसर नहीं है जब मिलर अपनी समस्या को सरकार के सामने रख रहा है । एसोसिएशन के माध्यम से अनेकों बार पत्र व्यवहार किया गया । सभी जिलों के मिलर्स ने अपने जिले के जनप्रतिनिधियों को समस्या से अवगत कराया । यह पिछले काफ़ी दिनों से चल रहा था लेकिन अब तक इसका समाधान नहीं हो पाया । जिससे मिलर को यह निर्णय लेना पड़ा कि वे पुनः सरकार से आग्रह करते हैं कि उनके मांगों पर जिन पर सरकार ने सहमति दी उसे शीघ्र निर्णय लेकर पूरी करे । जिससे कस्टम मिलिंग कार्य सुचारू रूप से चल सके ।
सरकार की हो रही थू-थू, 1400 करोड़ के नुकसान का अनुमान
जानकारी के मुताबिक धान खरीदी को लेकर इस बार सरकार की थू-थू हो रही है। पिछली सरकार ने ट्रांसपोर्टिंग के लिए अलग से निविदा प्रक्रिया नहीं की थी। सीधे मिलर्स को केंद्रों से धान के उठाव की अनुमति दी गई थी। इस बार सरकार ने तय किया है कि पहले वह धान संग्रहण केंद्र ले जाएगी, इसके बाद वहां से मिलर्स को आवंटित किया जाएगा। इसमें करीब 1400 करोड़ रुपए खर्च आएगा। हालांकि सरकार का मानना है कि इससे कई अन्य प्रकार की अनियमितता रुकेगी। धान सुरक्षित रहेगा।