- December 1, 2022
300 KM दूर बना मौसमी सिस्टम किस रास्ते आएगा, कहां ओले गिरेंगे पहले चलेगा पता
एशिया का सबसे बड़ा एटमॉस्फेयरिक रिसर्च सेंटर तैयार: 300 KM दूर बना मौसमी सिस्टम किस रास्ते आएगा, कहां ओले गिरेंगे पहले चलेगा पता
भोपाल में नजदीक शीलखेड़ा में स्थापित किए गए एटमॉस्फेरिक रिसर्च सेंटर में लगा रडार।
भोपाल में नजदीक शीलखेड़ा में स्थापित किए गए एटमॉस्फेरिक रिसर्च सेंटर में लगा रडार।
जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिए भोपाल के राजा भोज एयरपोर्ट से 20 km दूर शीलखेड़ा में एशिया का सबसे बड़ा एटमॉस्फेयरिक रिसर्च सेंटर अब पूरी तरह तैयार हो गया है। इसकी मदद से 300 km दूर मौसमी सिस्टम किस रास्ते आएगा, बादल कहां से कैसे आएंगे, कहां ओले गिरेंगे और कहां कितना पानी बरसेगा, यह सब पहले ही मालूम हो जाएगा।
इस रिसर्च सेंटर में फिनलैंड से इंपोर्ट कर अत्याधुनिक तकनीक सी बेड ड्वैल पोलर मैट्रिक रडार और केयू बैंड रडार लगाए गए हैं। वैज्ञानिक इस रडार के जरिए यह भी बता देंगे कि यह मानसूनी सिस्टम कहां मौजूद है। इंडियन इंस्टीट्यूट आफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी (IITM) पुणे इसका हेड क्वार्टर होगा।
IITM के डायरेक्ट ने किया सेंटर का निरीक्षण
IITM के डायरेक्टर आर. कृष्णन ने अपनी टीम के साथ सेंटर का निरीक्षण किया। पहली बार भोपाल आए कृष्णन ने बताया कि यह रिसर्च सेंटर स्कूल और कॉलेज के स्टूडेंट्स के रिसर्च के लिए भी उपलब्ध रहेगा। मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंस के अधीन आने वाले IITM की निगरानी में यह सेंटर स्थापित किया गया है।
अगले महीने होगा उद्घाटन
सेंटर की इलेक्ट्रिफिकेशन, इंटरनेट से जुड़ी सुविधाएं बाउंड्रीवॉल समेत अन्य व्यवस्थाएं पूरी हो गई हैं। अगले महीने केंद्रीय मंत्रियों की मौजूदगी में इसका औपचारिक उद्घाटन किया जाएगा। इस सेंटर में पुणे, बेंगलुरु, कोलकाता सहित देश के कई शहरों के वैज्ञानिक काम कर रहे हैं। आने वाले दिनों में और भी कई शहरों के वैज्ञानिक यहां काम के लिए आएंगे।
जमीन से 12 km ऊंचाई पर हवा का रुख क्या है,यह भी मालूम हो जाएगा
कृष्णन ने बताया कि इस सेंटर में विंड प्रोफाइलर रडार भी लगाया गया है। इसके जरिए जमीन से 12 km ऊंचाई पर वायुमंडल में हवा का रुख क्या है उसमें कितनी नमी है, इसकी भी सटीक जानकारी मिल जाएगी।
स्टूडेंट्स को रिसर्च के लिए मोटिवेट किया जाएगा
कृष्णन ने बताया कि स्कूल कॉलेज के स्टूडेंट्स को एटमॉस्फेरिक रिसर्च के लिए मोटिवेट किया जाएगा। सरकार की यह मंशा है कि विद्यार्थियों को रिसर्च के क्षेत्र में प्रोत्साहित किया जाए और देश में मौसम एवं वायुमंडलीय शोध के मामले में प्रगति हो।
भोपाल के पास सेंटर इसलिए बनाया
मौसम विशेषज्ञ के मुताबिक, मध्य भारत का यह क्षेत्र ऐसा है जहां से ऊपरी हवा के चक्रवात से लेकर लो प्रेशर एरिया और उसकी ट्रफ लाइन गुजरती हैं। बारिश के दौरान बिजली गिरने की सबसे ज्यादा घटनाएं भी इसी इलाके में होती हैं।